बक्सर खबर : इसे सनातन धर्म की आभा कहें या बिहार वासियों का संस्कृति से लगाव। अगहन माह में एक दिन ऐसा आता है। जिस तिथि को बिहार के लाखों लोग एक ही भोजन करते हैं। वह होता है लिट़़टी-चोखा। जानकारों की माने तो सिर्फ बक्सर जिले की संपुर्ण आबादि एवं बाहर से आए लाखों लोग इस तिथि को जरुर लिट़़टी-चोखा खाते हैं। इसकी ख्याती का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं। यह परंपरा मेले के नाम से पूरे बिहार में विख्यात है। जिसे लोग बक्सर का पंचकोश मेला अथवा लिट्टी-चोखा मेला के नाम से जानते हैं। अनुमानत: इस दिन तीस लाख लोग एक ही भोजन करते हैं। अमीर हों या गरीब हर घर में यह भोजन बनता है।
कब और कहां मनता है पंचकोश
बक्सर : बिहार का बक्सर जिला यहां एक दिन बहुत ही खास होता है। अगहन कृष्ण पक्ष की नौमी तिथि को लोग पंचकोश के नाम से जानते हैं। पांच दिनों का मेला जीस दिन समाप्त होता है। उस दिन हर घर में एक ही भोजन बनता है। लिट्टी-चोखा, क्या शहर क्या गांव। हर जगह इसकी धूम रहती है। जानकारों का कहना है। सिर्फ बक्सर ही नहीं, पड़ोस के आरा, सासाराम, कैमुर, बलियां और गाजीपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी यही खाना बनता है। क्योंकि प्रभु श्रीराम ने जब बक्सर आए थे। विश्वामित्र ऋषि ने भगवान के सम्मुख यह प्रसाद रखा। अपने अध्यात्मिक महत्व को बनाए रखने की गौरव शाली परंपरा आज भी जीवित है। इसको लेकर एक कहावत भी है। माई बिसरी, बाबू बिसरी, पंचकोशवा के लिट्टी-चोखा नाहीं बिसरी।
चरित्रवन का है विशेष महत्व
बक्सर : पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण जब सिद्धाश्रम पहुंचे (वर्तमान बक्सर ) तो इस क्षेत्र में रहने वाले पांच ऋषियों के आश्रम पर आर्शीवाद लेने गए। उनका अंतिम पड़ाव रहा चरित्रवन। जहां विश्वामित्र मुनी का आश्रम था। यहां भगवान ने लिट्टी-चोखा खाया था। इस वजह से इस तिथि को चरित्रवन का हर कोना-कोना लोगों से भर जाता है। गैर जिलों और ग्रामीण इलाकों से पहुंचने वाले लोग यहां लिट्टी बनाते और खाते हैं। यहां सुबह से लेकर शाम तक मेले का नजारा रहता है। जिसकी वजह से चरित्रवन में भारी भीड़ एकत्र होती है।
भीड का अनुमान लगाना मुश्किल
बक्सर : पंडित नरोत्तम द्विवेदी बताते हैं तीस लाख का अनुमान तो कम है। इससे ज्यादा संख्या में लोग पंचकोश समापन के दिन यह प्रसाद ग्रहण करते हैं। 22 लाख से अधिक तो इस जिले की आबादी है। इसके अलावा यहां काम करने वाले अधिकारी, कर्मचारी, पुलिस बल के लोग, अतिथि(उत्तर प्रदेश और झारखंड) , मजदूर इनकी संख्या तीस लाख से भी अधिक होगी। इतना ही नहीं बक्सर के लोग देश के जिस हिस्से में बसते हैं। वे इस दिन लिट्टी-चोखा बनाकर ही खाते हैं।
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