बक्सर का पंचकोशी मेला

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बक्सर खबर : पंचकोशी परिक्रमा सह पंचकोश मेला बक्सर की पहचान है। लोग इसे लिट्टी चोखा मेला के नाम से भी जानते हैं। इसको लेकर भोजपुरी भाषी लोगों के बीच एक कहावत भी प्रचलित है। माई बिसरी…बाबू बिसरी..पंचकोशवा के लिए लिट्टी चोखा नाहीं बिसरी। गैर प्रदेश के लोगों का भी इस मेले से उतना ही लगाव है। जब कभी कोई बक्सर से लोगों से मिलता। तो जरुर पूछ लेता है आपके यहां लिट्टी वाला मेला कब लगता है।शास्त्रीय मान्यता के अनुसार मार्ग शीर्ष अर्थात अगहन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मेला प्रारंभ होता है। पहले दिन अहिरौली, दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव तथा पांचवे दिन चरित्रवन में लिट्टी चोखा-खाया जाता है।

मेले की परिक्रमा में शामिल लोग इन पांचों स्थान पर जाते हैं। विधिवत दर्शन पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम विश्वामित्र मुनी के साथ सिद्धाश्रम आए थे। यज्ञ में व्यवधान पैदा करने वाली ताड़का व मारीच-सुबाहू को उन्होंने मारा था। इसके बाद इस सिद्ध क्षेत्र में रहने वाले पांच ऋषियों के आश्रम पर वे आर्शीवाद लेने गए। जिन पांच स्थानों पर वे गए। वहां रात्रि विश्राम किया। मुनियों ने उनका स्वागत जो पदार्थ उपलब्ध था, उसे प्रसाद स्वरुप देकर किया। उसी परंपरा के अनुरुप यह मेला यहां आदि काल से अनवरत चलता आ रहा है।

अहिल्या मंदिर

पहला पड़ाव- गौतम ऋषी का आश्रम, जहां उनके श्राप से अहिल्या पत्थर हो गयी थी। उस स्थान का नाम अब अहिरौली है। इसे लोग हनुमान जी की ननिहाल भी कहते हैं। यहां जब भगवान राम पहुंचे। तो उनके चरण स्पर्श से पत्थर की शीला बनी अहिल्या जी श्राप मुक्त हुयी। वैदिक मान्यता के अनुसार अहिल्या की पुत्री का नाम अंजनी था। जिनके गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ। शहर के एक किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में अहिल्या मंदिर है। जहां मेला लगता है। यहां आने वाले श्रद्धालु पकवान और जलेबी प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।

नर्वदेश्वर महादेव मंदिर में पूजा अर्चना करते श्रद्धालु

दूसरा पड़ाव नदांव में : पंचकोश मेले का दूसरा पड़ाव नदांव में लगता है। जहां कभी नारद मुनी का आश्रम हुआ करता था। जिस वजह से इस गांव का नाम नदांव हो गया। आज भी गांव में नर्वदेश्वर महादेव का मंदिर और नारद सरोवर विद्यमान है। यहां आने वाले श्रद्धालु खिचड़ी चोखा बनाकर खाते हैं। ऐसी मान्यता है कि नारद आश्रम में भगवान राम और लक्ष्मण जी का स्वागत खिचड़ी -चोखा से किया गया था।

चुडा-दही का प्रसाद ग्रहण करती महिलाएं

तीसरा पड़ाव- यह स्थान कभी भार्गव ऋषि का आश्रम हुआ करता था। जहां भगवान द्वारा तीर चलाकर तालाब का निर्माण किया गया था। इस स्थान का नाम अब भभुअर हो गया है। यहां भार्गवेश्वर महादेव का मंदिर था। जिसकी पूजा अर्चना के बाद लोग चूड़ा-दही का प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह स्थान शहर से तीन चार किलोमीटर दूर सिकरौल नहर मार्ग पर स्थित है।

चौथा पड़ाव- शहर के नया बाजार से सटे बड़का नुआंव गांव में चौथा पड़ाव लगता है। जहां उद्दालक मुनी का आश्रम हुआ करता था। यहीं पर माता अंजनी व हनुमान जी रहा करते थे। यहां सतुआ मुली का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

किला मैदान में लिट़़टी बनाती महिलाएं

पांचवा पड़ाव – पंचकोश मेले का पांचवा पड़ाव शहर के चरित्रवन में लगता है। जहां विश्वामित्र मुनी का आश्रम हुआ करता था। यहां लिट्टी-चोखा खाकर मेले का समापन होता है। यह जिले का बहुत ही खास मेला है। इसका अंदाज इसी से लगा सकते हैं। हर घर में समापन के दिन लिट्टी चोखा बनता है। सिर्फ चरित्रवन में ही नहीं। क्या अमीर क्या गरीब, इसका भेद पंचकोश के दिन जैसे मिट जाता है। इतना ही नहीं बक्सर के लोग जो देश या विदेश में बसते हैं। इस तिथि को यही भोजन बनाकर ग्रहण करते हैं।

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