बक्सर खबर : चौथ का चांद देखना भारतीय वैदिक परंपरा के अनुसार कलंक का भागी बनाता है। इसका दर्शन करने वाले पर झूठे लांछन लगते हैं। इस लिए भाद्र पद (भादो का महिना ) शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चन्द्रमा का दर्शन निषिद्ध है। बिहार में अथवा देश के कई ग्रामीण इलाकों में इसे ढ़ेलहवा चौथ के नाम भी लोग जानते हैं।
क्यों लगता है दोष, क्या है इसकी कथा
बक्सर : भागवत पुराण के दशम स्कंध के 56,57 वें अध्याय में इस कथा का वर्णन मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी व प्रसेन जीत की हत्या का आरोप लगा। बात इतनी बढ़ी की बलराम जी से विद्रोह हो गया। उनका अपमान हुआ। जिसकी वजह से भगवान अवसाद से भर गए। यह देख नारदजी वहां आए। प्रभु से कहा यह कलंक आप पर इस लिए लग रहे हैं। क्योंकि आपने भाद्र पद की चतुर्थी तिथि को चन्द्र का दर्शन कर लिया है। यह सुन कृष्ण जी ने पूछा ऐसा क्या दोष है चन्द्रमा में। जिसकी वजह से लोगों को ऐसा कलंक लग जाता है। नारद जी ने बताया। भाद्र पद की चतुर्थी को ब्रह्मा जी ने गणेश जी का व्रत किया था।
गणेश जी ने प्रसन्न हो, ब्रह्मा जी से वर मांगने को कहा। उन्होंने कहा मुझे सृष्टि की रचना का घमंड , मोह न हो। तथास्तु कह गेणश जी जाने को हुए। तभी चन्द्रमा ने उनके शारीरिक बनावट की हंसी उड़ा दी। नाराज गणेश जी ने उन्हें श्राप दिया। आज के बाद तुम्हारा मुंह कोई देखना नहीं चाहेगा। चन्द्रमां श्राप के कारण मानसरोवर में जाकर छिप गए। देवगण आदि ने गणेश वंदना कर उन्हें प्रशन्न किया। इस समस्या का निदान निकालने को कहा। भगवान कहा श्राप तो खत्म नहीं होगा। लेकिन, हमेशा नहीं , इस तिथि को जो भी इसे देखेगा। वह इनकी वजह से लांछन का भागी होगा।
क्या है निदान अथवा दोष निवारण
बक्सर : निदान के संबंध में पूछने पर पंडित नरोत्तम द्विवेदी ने बताया कि ऐसी कथा है भाद्रपद की द्वितीया को चन्द्र दर्शन करने वाले पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही सिद्घिविनायक व्रत करने वाले पर भी इसका प्रभाव कम हो जाता है। इसके अलावा विष्णु पुराण में एक श्लोक दिया गया है। इसका जप करने से भी चन्द्र दर्शन के दोष का छय होता है।
”सिंह: प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हत: ।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक:।।