बक्सर खबर : श्रीरामेश्वरनाथ मंदिर में चल रहे कूर्म पुराण की कथा के तीसरे दिन कई ज्ञान वद़र्धक बातें लोगों ने जानी। आचार्य कृष्णानंद शास्त्री जी ने कथा के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए तीन मार्ग है। कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग। यह संसार कर्मयोग पर आधारित है। कर्मयोगी बनना अन्य की अपेक्षा श्रेष्ठ है। कर्म योग की शिक्षा देने के लिए ही ईश्वर के अनेक अवतार होते हैं। कर्मयोगी का सीधा अर्थ होता है निश्चित कर्म से सम्बन्ध रखने वाला व्यक्ति। फल की आशा से रहित कर्म का कर्ता कर्मयोगी कहलाता है। भगवान कच्छप एक महान कर्म योगी है। जो स्वयं कर्म फल का भोग न करें वहीं कर्मयोगी कहा जा सकता है। कच्छप अपनी पीठ पर मन्द्राचल पर्वत रखकर समुंद्र मन्थन कराये पुनः प्राप्त अमृत का वितरण देवताओं में कर दिया स्वयं अमृत का एक बूंद भी नहीं लिए। विष्णु अपने प्रत्येक अवतार में कर्म योग की पूर्ण स्थापना करते हुए देखे गए हैं।
रामावतार में राम परम कर्म योगी है। राम राज्य की स्थापना के उपरान्त जब सीता पर लांछन लगा तब राजा राम को अतीव चिन्ता हुई। एक राजा का दायित्व है प्रजा का पालन करना तथा एक पति का कर्तव्य है पत्नी की रक्षा करना। राम अत्यन्त दुविधा में पड़ गये पति का फर्ज पूरा करूं या राजा का। कर्म योगिनी सीता को जब पता चला तब सीता ने स्वयं को महारानी बता कर श्री राम के कर्म योग की साधना को दुविधा को दूर कर दिया कर्मयोगी राजा राम राज्य शासन के कर्म को महान मानते हुए प्रजा के हित का ध्यान रखकर स्वयं अपनी भार्या सीता के जीवन को दुःखी एवं तबाह कर दिया। सीता को वन में भेजकर राजा राम ने सिद्ध कर दिया एक कर्मयोगी को दुख-सुख लाभ हानि का विचार किये बिना उचित कार्य करना चाहिए। यही नहीं जीवन संकट ग्रस्त होता है तो इसकी चिन्ता किए बगैर व्यक्ति को उचित कर्तव्य पथ का ही चयन करना चाहिए। कर्मयोगी का यही असली स्वरूप है। वह स्वयं के एवं सम्बन्ध के लिए नहीं अपितु प्राप्त कर्तव्य के अनुपालन हेतु कर्म करता है। आज स्वार्थ ने समाज को कमजोर कर दिया है। मानवता का स्थान दानवता ले रही है। कूर्म पुराण इसी कर्म योग का ज्ञान कराता है।