बक्सर खबर : मिट्टी की मूर्तियां बनाने वालों के अच्छे दिन आ गए हैं। इसका एहसास उनको एक दशक बाद हुआ है। लंबे समय से इस पुश्तैनी धंधे में जुटे कलाकार मानों बेरोजगार से हो गए थे। एक नहीं सैकड़ो परिवार कहें तो गांव-गांव के कुम्हार इससे दूर होते जा रहे थे। लेकिन, इस बार उन्हें उम्मीद की किरण दिखी है। इस वर्ष मिट्टी की प्रतिमा, खिलौने व दीये बनाने वालों के चेहरे पर खुशी है। क्योंकि इसकी डिमांड बढ़ गयी है। जिले में डुमरांव शहर के पटेहरी टोला निवाासी राजकुमार प्रजापति की बातें सुनकर ऐसा लगा। पिछले कई वर्षो से वे इस धंधे में जुटे हैं। उनकी पत्नी भी इसमें हाथ बंटाती हैं। प्रजापति ने बताया कि चाइना का हो रहे विरोध ने हमारे धंधे को नयी ताकत दी है। इस वर्ष तीन गुना ज्यादा आर्डर मिले हैं। हमारे यहां छोटी मूर्ति व खिलौने एक हजार रुपये सैकड़ा व बड़ी साइज की मूर्ति व खिलौने आठ हजार रुपये सैकड़ा मिलते हैं। यह थोक व्यवसाय का रेट है। इस वर्ष उत्तर प्रदेश के बलियां, पटना, आरा, झारखंड से आर्डर मिला है। इन जगहों से पहले भी आर्डर मिलता था। हाल के वर्षो में मांग बहुत कम हो गयी थी। क्योंकि भारतीय घरों तक चाइनीज गणेश और लक्ष्मी जी ने जगह बना ली थी। उनके अनुसार डुमरांव में लगभग बीस घर ऐसे हैं। जो इस धंधे से जुड़े हैं। ऐसा ही गांव है महरौरा। जहां कुछ और लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं। जो मूर्तियां और खिलौने बनाते हैं। दीये बनाने वाले कुम्हार तो जिले के कई इलाकों में भरे पड़े हैं।
बहुत अच्छी खबर
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धन्यवाद भैया