बक्सर खबर : पत्रकारिता का मौजूदा दौर तेजी से बदल रहा है। बदलाव की इस दौर में खुद को उसके साथ खुला छोड़ दें। अगर आप ऐसा करेंगे तो स्वयं अपडेट होते रहेंगे। आपने अडीयल रुख बनाए रखा तो आउट डेटेड हो जाएंगे। पत्रकारिता जगत में आपकी जगह दूसरा ले लेगा। इस लिए जरुरी है बदलाव की आंधी में अपने आप को खुला छोड़ दें। तभी आप और आपकी पत्रकारिता दोनों को आयाम मिलेगा। आज का दौर इंटरनेट का है। प्रिंट मीडिया एक दिन पहले की बात बताता है। उसका सीधा मुकाबला वेब मीडिया से है। इस लिए प्रिंट मीडिया के पत्रकार इस बात का ध्यान रखें। आपको भी आगे की बात बतानी होगी। उन बातों और खबरों पर विशेष ध्यान रखना होगा। जो पाठकों को कुछ अधिक बताए। खबरों का विश्लेषण करना होगा। तभी आपकी अहमियत बनी रहेगी। अन्यथा आपको कोई पढ़ेगा नहीं।
यह सुझाव व अनुभव की बातें हमारे साथ साझा करने वाले पत्रकार हैं राकेश कुमार सिंह। जिले के इटाढ़ी बाजार से संबंध रखने वाले राकेश ने अपना लंबा समय बक्सर में गुजारा है। फिलहाल दैनिक भास्कर पटना के प्रादेशिक डेस्क पर काम कर रहे हैं। वे कहते हैं आप अगर कामयाबी पाना चाहते हैं। तो अपने प्राइमरी ज्ञान और उसे देनें वाले दोनों को याद रखें। आजीवन उसका स्मरण रखना होगा। तभी बात बनेगी और आप हमेशा अपडेट बनें रहेंगे। राकेश के अनुभवों को हमने अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के लिए साझा किया। प्रस्तुत है उस बातचीत के कुछ प्रमुख अंश।
संघर्ष से भरा पत्रकारिता जीवन
बक्सर : राकेश कुमार सिंह इटाढ़ी के निवासी हैं। वहीं से उन्होंने मई 2002 में संवाद सूत्र इटाढ़ी के रुप में काम करना शुरु किया। तब खबरें डाक अथवा मैसेंजर द्वारा संवाददाता अपने कार्यालय को भेजा करते थे। वे बताते हैं दूध वालों के हाथ अपनी पैकेट बक्सर भेजा करते थे। तब अपने पास फोन भी नहीं था। कोई बड़ी घटना हो गई तो साइकिल अथवा बस किसी से भी भागकर बक्सर जाना पड़ता था। कुछ समय बाद फैक्स की सुविधा मिली। बगैर रुपये-पैसे की हमने पत्रकारिता शुरु की थी। आज भी याद आता है। खबर के लिए मैने घर में लैंड लाइन फोन लगाया था। वर्ष 2006 में बक्सर में माडम कार्यालय खुला। अवधेश बच्चन कार्यालय प्रभारी बनकर आए। मुझे बक्सर बुला लिया गया। समय गुजरता गया, प्रभारी बदलते रहे। बीच बीच में कार्यालय प्रभारी का दायित्व भी मिला। वर्ष 13 में बक्सर का प्रभारी था। आरा से नए साथी बक्सर आए। मुझे पटना डेस्क पर बुला लिया गया। वहां कुछ माह तक मैंने काम किया। 13 दिसम्बर में ही दैनिक भास्कर पटना कार्यालय में मैने योगदान किया। पिछले चार वर्षो से भास्कर के प्रादेशिक डेस्क पर काम कर रहा हूं।
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पत्रकारिता के यादगार पल
बक्सर : राकेश बताते हैं। वह दौर था जब वर्ष 2006 से 12 के बीच एग्रेसीव पत्रकारिता हुई। मैं हिन्दुस्तान में था। दूसरी तरफ जागरण में अविनाश भैया और उनकी टीम थी। हम लोगों के बीच स्पर्धा रहती थी। कौन खबरों में आगे रहेगा। तब हम लोगों ने खबरों के लिए दिन देखी न रात। अखबार बोलता था और प्रशासन तथा पुलिस सुनती थी। इस वजह से अक्सर टकराव भी होता था। मुझे याद आता है वह पल जब स्टेशन पर जागरण के छायाकार आलोक के साथ बक्सर पुलिस वालों ने बदसलूकी। सभी ने मिलकर पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। एसपी ओएन भाष्कर ने उन सिपाहियों को सस्पेंड किया। डीएम विपिन कुमार स्वयं समझौता कराया। बक्सर में रहते हुए अन्य दो तीन घटनाएं भी याद आती हैं। वर्ष 2006 में इटाढी पुल पर स्थित पुलिस कैंप पर नक्सली घटना हुई। दस राइफलें लूट ली गईं। एसपी परेश सक्सेना द्वारा गलत सलूक के खिलाफ भी अभियान छेड़ा गया। इसी बीच एसपी उपेन्द्र सिन्हा के दौर में बिहार का सबसे बड़ा एनकाउंटर राजपुर के लक्ष्मणपुर गांव में हुआ। सुरेश राजभर अपने सात साथियों के साथ मारा गया। दो दिन तक हम लोग वहां जमे रहे। खाने के लिए एक बिस्कुट नहीं था। लेकिन पत्रकारिता का जुनून था।
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व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : राकेश का जन्म 10.01.1982 को विनोद कुमार सिंह के घर में हुआ। राकेश बहुत ही आत्म संयमित जीवन व्यतीत करने वाले युवाओं में हैं। वर्ष 2002 में पत्रकारिता भी शुरु और शादी भी हो गई। जहां भी रहे पत्नी के साथ रहे। बक्सर से लेकर पटना तक उनका परिवार साथ रहा। इस बीच एक पुत्र व पुत्री के पिता बने। बेटे का नाम उन्होंने अनुभव रखा है। जो अनुभव उनके साथ आज पटना में पल बढ़ रहा है।