बक्सर खबर : बक्सर अनुमंडल था आज जिला बन गया है। इसे क्या मिला। मैं तो कहता हूं जो था वह भी जाता रहा। एक नेता थे एपी शर्मा। उन्होंने बक्सर को पर्यटक गांव की सूची में शामिल कराया था। लेकिन हुआ कुछ नहीं। हालाकि मैं उनको अच्छा नेता मानता हूं। कम से कम पर्यटक स्थल नहीं पर्यटन गांव ही की सूची में जिले का नाम तो शामिल हुआ। बाद वालों ने क्या किया। केके तिवारी तो केन्द्र में मंत्री रहे। उनके बाद भी यहां कई सांसद व विधायक हुए। पर किसी ने जिले के लिए ऐसा कुछ नहीं किया जो याद किया जा सके। यह दर्द है पैदल पत्रकार प्रहलाद वर्मा का। बक्सर खबर ने उनसे पत्रकारिता जीवन के अनुभव के बारे में जानने के लिए संपर्क किया।
उनका दर्द इतना है कि उसे शालीन शब्दों में अभाव का नाम दिया जा सकता है। जीवन को पैदल काटते चले आ रहे है। आज के जमाने के गुमनाम पत्रकार प्रहलाद वर्मा को जिले का पहला फ्रीलांसर पत्रकार होने का गौरव प्राप्त है। इसका ठोस साक्ष्य यह है कि वे जिला बनने के पहले से स्वतंत्र पत्रकार के रुप में कार्य करते चले आ रहे थे। उनके सामने ही बक्सर जिला बना। बातचीत के दौरान जो तथ्य सामने आए। उसके कुछ अंश आपके सामने हैं।
लिखने के लिए पढऩा जरुरी है
बक्सर : बेहतर वहीं लिख पाएगा। जो पढ़ेगा, अन्यथा बेहतर नहीं लिख पाने के कारण आप इस क्षेत्र में दीर्घकालिक नहीं हो सकते। यह अनुभव है प्रहलाद वर्मा का। उनका मानना है अभाव में मनुष्य अपना जीवन नष्ट कर लेता है। 1987 की एक घटना थी। धर्मराज नाम था उस व्यक्ति का जिसने अपनी पत्नी समेत तीन बच्चों की हत्या कर दी थी। पुलिस ने उसे जेल में डाल दिया। कुछ दिन बाद उचित समय देख उसने फांसी लगा ली। पूरा परिवार आर्थिक तंगी के कारण समाप्त हो गया। खुद के अभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा मेरे पास जो भी है। उससे बहुत आनंद मिला है। मुझे इसका गम नहीं।
पत्रकारिता जीवन
बक्सर : प्रहलाद वर्मा पढऩे-लिखने के शौकीन थे। तत्कालीन पत्रकार कुमार नयन, रामेश्वर वर्मा व अरुण मोहन भारवी को उन्होंने बहुत आदर दिया। इन सबकी सोहबत में वे पत्रकार बनने में जुट गए। एक लेख लिखा। लाइट एंड साउंड पर, 1987 में उसे पाटलीपुत्रा ने प्रकाशित किया। अब तो वे फूले नहीं समाए। लेकिन वे पत्रकार नहीं थे। किसी अखबार ने उनको संवाददाता नहीं रखा था। पर लिखने की भूख थी। लिखते रहे, सभी अखबारों में जगह मिलती रही। पाटलीपुत्रा व स्वतंत्र भारत, वाराणसी के अंक में छपते रहे। क्या सरकार प्राचीन धरोहरों को बचा पाएगी, गर्भ में जाने को तैयार बक्सर का किला तो कभी शहादत के सिने पर सरसों की खेती लिख खासे चर्चा में रहे। जिससे उन्हें स्वतंत्र पत्रकार का दर्जा प्राप्त हो गया।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : पत्रकारिता के साथ प्रहलाद वर्मा सामाजिक कार्य भी करते हैं। जिसका परिणाम यह है कि उनकी पत्नी मंजू देवी तीन बार से वार्ड 25 की पार्षद हैं। 13.07.1960 को इनका जन्म रामेश्वर प्रसाद के घर में हुआ। पांच भाइयों में वे सबसे बड़े हैं। गौरी शंकर मंदिर से पढ़ाई शुरू कर 1984 में एमवी कालेज से स्नातक पास किया। आगे पढऩे के लिए महाराजा कालेज आरा गए पर परिस्थिति ने आगे नहीं बढऩे दिया। तीन बेटियों एवं एक पुत्र के पिता होने का इन्हें गौरव प्राप्त है। उमर बढ़ रही है। लेकिन, परिवार के साथ अपने मुहल्ले की चिंता भी सताती रहती है। छात्र जीवन में भी वे एआइवाइएफ से जुड़े रहे। अपनी जिंदगी के दर्द को बयां करते हुए उन्होंने कहा – मंजिलें तरसती रहीं मेरे पांव की, शायद मेरी तकदीर का सफर ही बाकी है।
Kya bhai aplog kabtak galat likhte rahenge….
Ek putra ka pita hone ka gaurav unhe prapt hai……. ye sahi hai…..