बक्सर खबर : प्रदीप उर्फ मिलु चौधरी का जरायम की दुनिया से पुराना रिश्ता रहा है। बगेन थाना के बरुआ गांव रहने वाले चौधरी के पिता मुखलाल चौधरी की हत्या वर्ष 1976 के सितम्बर माह में हुई थी। उसके बाद से ही मिलु ने लाल झंडे का साथ देना शुरु किया। इस इससे भी पहले उसके चाचा व फादर चौधरी के पिता सूखलाल चौधरी की हत्या वर्ष 1974 में ही कर दी गयी थी। अपनी पिता की मौत के बाद जब मिलु ने अपराध की दुनिया में कदम रखा। उसका परिणाम रहा कि 1977 में महेश यादव की हत्या हुई। फिर शुरु हुई इस गांव में यादव बनाम चौधरी की जंग। जिसमें न जाने कितने लोग मारे गए। साल दर साल बरुआ में कभी यादव तो कभी चौधरी बिरादरी की हत्या होने लगी। तब दोनों चचेरे भाई मिलु और फादर साथ-साथ थे। लेकिन इनके बीच भी राजनीतिक वर्चस्व को लेकर दूरी बढती गयी। शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस गांव में 1990 के दौरान पुलिस पीकेट बनाना पडा। 2006 के पंचायत चुनाव में फादर को हार का मुह देखना पडा। दो चचेरे भाइयों में दुश्मनी कट्टर हो गयी।इसी बीच फादर चौधरी के समर्थक बंशी चौधरी के हत्या कर दी गयी। जिसके परिणाम स्वरूप दोनों भाइयों में दुश्मनी खुनी-खेल में तब्दील हो गयी। आज मिल्लु के हत्या में बंशी के तीनों बेटों का नाम है। इस बीच फादर के भाई संतोष चौधरी की हत्या हो गयी। जिसमें मिलु का नाम आया। इन दोनों परिवारों के बीच अपहरण और हत्या के कई मुकदमें हुए। दुरियां बढती गयी, आज परिणाम सामने हैं। गांव में जाने पर पता चला कि इन दोनों के घर एक दूसरे के आमने-सामने है। इन सबसे अगल रहीं मिलु चौधरी पत्नी। वे अस्पतला में नर्स हैं। उन्होंने अपने बच्चों को इससे अलग रखा। जिसका परिणाम है उनका बडा बेटा स्कूल चलाता है। छोटा बेटा आइआइटी खडगपुर का छात्र है। दो बेटियों में एक ने एमबीए किया। दूसरी इंजीनियरिंग की पढाई कर रही हैं। अक्सर यह बात सूनने को मिलती है। अगर मां शिक्षित हो तो वह अपने बच्चों का भविष्य बदल सकती है। मिलु की पत्नी ने यह बात सच कर दिखाई है।