बक्सर खबर :धर्म चार स्तम्भों पर टिका है। शास्त्र बतातें हैं इसका पहला स्तंभ सत्य, दूसरा तप, तीसरा दया और चौथा दान है। आज कलयुग में यह धर्म सिर्फ दान पर टिका है। यह बातें पूज्य संत जीयर स्वामी जी महाराज ने गुरुवार को चंदवा के चातुर्मास में कहीं। कथा के दौरान कहा भागवत में इसकी चर्चा मिलती है। भगवान श्री कृष्ण के नित्यधाम जाते ही कलियुग का आगमन पृथ्वी पर हो गया। राजा परीक्षित ने कलि को सशरीर पकड़ लिया।वह चांडाल वेष में गाय और बैल को पैर से मारते हुये ले जा रहा था।
राजा परीक्षित ने वृषभ रूपी धर्म से पूछा कि तुम्हारे तीन पैर किसने तोडे। वृषभ ने कहा मैं धर्म हूं। मेरे चार पैर सत्य, तप, दया और दान हैं। सतयुग में धर्म के चारों पैर सुरक्षित थे। त्रेतायुग में सत्य कमजोर हो जाने से एक पैर टूट गया। द्वापर में सत्य और तप दोनों कमजोर हो जाने से दुसरा पैर टूट जाता है। कलियुग में सत्य, तप और दया तीनों कमजोर हो जाने से तीनों पैर टूट गए हैं। अर्थात इन तीनों की गरिमा नहीं रह जाती है। चारों तरफ छल, कपट, कलह, अनीति, अन्याय और अधर्म का बोलबाला हो जाता है। इस गुढ रहस्य की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने बताया कि कलियुग में धर्म सिर्फ दान के बल पर टीका हुआ है। दान के माध्यम से ही लोगों का कल्याण हो सकता है। उन्होंने कहा जिस तरह धर्म के चार पुत्र हैं। उसी तरह अधर्म के चार पुत्र हैं – (1) लोभ (2) अनीति (3) कलह (4) दम्भ । यह चारों कलि के प्रभाव से धीरे-धीरे बलवान होते जाते हैं। इनके प्रभाव में जो आएगा। उसका धर्म भ्रष्ट होना तय है।