बक्सर खबर : पत्रकारिता के क्षेत्र में शिवजी पाठक ऐसा नाम है। जिन्हें जिले का हर छोटा बड़ा कलमकार जानता है। शायद कुछ लोग ऐसे हों जिन्हें उनके बारे में जानने का मौका नहीं मिला हो। छोटे से कद के शिवजी पाठक का व्यक्तित्व बहुत बड़ा है। हमेशा मुस्कुरा कर मीठे स्वर में बोलने वाले पंडित जी को डुमरांव के लोग बाबा कह के बुलाते हैं। उनके दौर के साहित्यकार साथी महामुर्ख कहकर भी बुलाते हैं। इसकी खास वजह है। 1987 में उन्होंने पटना की तर्ज पर महामुर्ख सम्मेलन का आयोजन करना शुरु किया। होली मिलन का यह कार्यक्रम लगभग 25 वर्षो तक लगातार चला। जिसका नाम महामुर्ख सम्मेलन था। इसकी वजह से बाबा को महामुर्ख भी कहा जाता है। उस दौर की चर्चा करते हुए पाठक जी कहते हैं। डुमरांव के सभी पत्रकार, साहित्यकार इस आयोजन की जान थे। विशेषकर प्रदीप जायसवाल के सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता। उस नौजवान ने मुझे हर तरह का सहयोग दिया। पाठक जी वह व्यक्ति हैं जिन्होंने बक्सर को जिला बनाने और डुमरांव को अनुमंडल बनाने के लिए संघर्ष किया। अनुमंडल संघर्ष समिति बना इसकी लड़ाई लड़ते नहीं थके। 1994 में डुमरांव को अनुमंडल का दर्जा मिला। पूरा डुमरांव झूम उठा। लेकिन, उसके लिए गलि-गलि में घूम कर दीवार लेखन करने वाले इन महोदय को डुमरांव शायद ही भूल पाए। इस वजह से जिले की पत्रकार बिरादरी उन्हें बहुत सम्मान देती है। पेश से उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश।
बाबा टाइम्स का किया संपादन
बक्सर : शिवजी पाठक जितने मजे पत्रकार हैं। उतने ही लगनशील साहित्यकार भी। 1986 में उन्होंने बाबा टाइम्स पत्रिका निकालनी शुरु की। तब शाहाबाद क्षेत्र की वह इकलौती पत्रिका थी। उनका एक प्रयास आज भी याद किया जाता है। सभी साहित्यकारों की जीवनी प्रकाशित की। एक-एक करके तब के दौर के सभी पुराने व नए साहित्यकारों को तलाश-तलाश कर उसमें जगह दी। कुछ ही दिनों में बाबा टाइम्स पूरे इलाके में मशहूर हो गई। 1989 में डुमरावं आए उत्साद बिसमिल्लाह खां का साक्षात्कार उन्होंने अपनी पत्रिका व समाचार पत्र आज दोनों में प्रकाशित किया। उत्साद भी उन्हें बहुत मानते थे। जब भी डुमरांव आते शिवजी पाठक से जरुर मिलते। उनकी सादगी व बोलचाल ऐसा था। जिससे सामने वाले को पता ही नहीं चले। वह इतने बड़े आदमी थे। साधारण जीवन व्यतीत करने वाले उत्साद उन्हें अपने साथ वाराणसी के घर भी ले गए।
पत्रकारिता का सफर
बक्सर : कोलकत्ता से निकलने वाले विश्व बंधु व पटना से प्रकाशित होने वाले विश्वामित्र के लिए सबसे पहले शिवजी पाठक ने लिखना शुरु किया। इस दौरान 1974 में आज समाचार पत्र से जुड़े। दो हजार के दशक तक वे लगातार लिखते रहे। आज भी किसी-किसी विषय पर वे अपना लेख आज समाचार पत्र को भेजते रहते हैं। उनके साथ काम करने वाले डुमरांव के अली अनवर आज राज्य सभा सांसद हैं। उनके दूसरे सबसे निकटस्थ सहयोगी रामेश्वर प्रसाद वर्मा वकालत के पेशे में बंध गए हैं। इसी दौरान डुमरांव ही नहीं बिहार के मशहूर शायर शायदा जी की पुस्तक रावण अंगद संवाद का भोजपुरी अंक भी उन्होंने प्रकाशित किया। जिसे साहित्य जगत उन्हें दिल से याद करता है। मौजूदा दौर की पत्रकारिता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा। पहले उन खबरों को प्राथमिकता मिलती थी। जो समाज की जरुरत होती थी। साहित्य, संस्कृति, धरोहरों पर विशेष जोर होता था। आज उसका अभाव है। खबरें तो रोज छपती हैं। अपनी विरासत का ध्यान नहीं रहा। क्योंकि पत्रकारिता प्रसार व सनसनी तक सिमट गई है। इस दरम्या बक्सर पत्रकार संघ ने समारोह आयोजित कर उन्हें पत्रकार भूषण सम्मान से नवाजा।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : शिवजी पाठक का व्यक्तिगत जीवन संघर्षो से भरा है। पिता स्व. विश्वनाथ पाठक नेनुआं गांव के निवासी थे। उनको दो पुत्र व तीन पुत्रियां थी। इनका जन्म 12.5.1948 को हुआ। राज हाई स्कूल से मैट्रिक करने के बाद 1971 में कामेश्वर विश्व विद्यालय दरभंगा से शास्त्री की डिग्री हासिल की। पिता जी किसान वे पुरोहित का कार्य करते आए थे। उस विरासत को साथ लेकर चलने वाले श्री पाठक ने उसमें पत्रकारिता को जोड़ दिया। आज दो पुत्रियों और एक पुत्र के पिता हैं। इनका खुद का घर डुमरांव में है। शेष जीवन खुली किताब है।