जुनून के आगे दाव पर लगा जीवन, न कलम छूटी न कैमरा : बबलू

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बक्सर खबर : शौक से पत्रकारिता करने वालों को भविष्य में खुद से लडऩा पड़ता है। जिंदगी से समझौता करना होता है। या आदर्श चुनों या बाजार से समझौता करो। क्योंकि जिम्मेवारियां चैन से सोने नहीं देती। पत्रकारिता एक जगह रुकने नहीं देती। जीवन दो हिस्सों में बंट जाता है। लेकिन पत्रकारिता का जुनून है कि रेस में बने रहने के लिए व्यक्ति खुद को जलाकर रख देता है। ऐसे ही पत्रकार हैं बबलू उपाध्याय। जिन्हें जीवन ने कई झटके दिए। अनेक परेशानियां झेली। लेकिन न कलम छोड़ी न कैमरा। आज भी उसी जोश के साथ लगे हुए हैं। सदर प्रखंड के मझरियां गांव के निवासी होने का गौरव इन्हें प्राप्त है। पत्रकारिता में रहते हुए ग्यारह नंबर गाड़ी से चलने वाले बबलू उपाध्याय खुद बाइक भी नहीं चलाते। पर जहां देखिए मौजूद जरुर रहते है। अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के लिए हमने उनसे संपर्क साधा। बातें हुई, कई पुरानी यादें ताजा हुई। पेश है बातचीत के कुछ प्रमुख अंश

नशीले पदार्थ के खिलाफ लिखकर मचा दी खल-बली
बक्सर : सक्रिय पत्रकारिता में अपनी उपस्थिति का दावा पेश करते हुए बबलु उपाध्याय बताते हैं। गांजा तस्करी के लिए बक्सर बदनाम था। खासकर गंगा किनारे के गांव काफी चर्चा में थे। मैने इसके खिलाफ लगातार इक्कीस दिन का सीरियल चलाया। तत्कालीन एसपी नैयर हसनैन खां थे। उन्होंने भी भरपुर साथ दिया। बक्सर के इतिहास में गांजा के खिलाफ सबसे बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया गया। यह सबकुछ आज अखबार की देन थी। उससे पहले मैंने हिन्दुस्तान में भी कुछ समय के लिए कार्य किया। समाचार संपादक जसपाल सिंह पवार थे। उनके निर्देशन में पुलिस फाइल से साप्ताहिक कालम चलाना प्रारंभ किया। मचा हडकंप, फिर तो वह कालम भी बंद हो गया और मैं हिन्दुस्तान छोड़ पुन: आज दैनिक में वापस आ गया। हालाकि बबलु भाई ने उसका जिक्र नहीं किया। लेकिन, इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम करते हुए उन्होंने एक स्टोरी चलाई थी। बिहार के पूर्व मंत्री शिवानंद तिवारी, बार बालाओ का डांस देखते हुए। खबर ने पूरे बिहार में बवाल मचाया। इसके बाद तिवारी के समर्थकों ने बबलु भाई पर केश भी किया। आगे चलकर जिसकी सुलह हुई।
पत्रकारिता जीवन
बक्सर : बात 1995 के लगभग की है। तब बिहार के रांची में रहकर उद्यमिता विकास संस्थान से प्रशिक्षण ले रहे थे। तभी कुछ साथियों की सोहबत में रांची एक्सप्रेस में स्थानीय विषय पर कुछ लिखकर भेजा। खबर छप गई। अंदर का जुनून जग गया। प्रशिक्षण व रोजगार की तरफ से ध्यान हटा। लग गए पत्रकारिता में। झारखंड से प्रकाशित होने वाले प्रमुख अखबार प्रभात खबर से लिखना प्रारंभ किया। रामगढ़ से लिखने की जिम्मेवारी मिली। अब क्या था, पत्रकार को लगता है उसके आगे पीछे कोई नहीं है। रम गए उसी में। इस बीच गांव मझरियां में दादा जी अकेले रहा करते थे। उनका स्वास्थ्य खराब हुआ। बबलु भाई वहां से बक्सर आ गए। यहां आने के बाद आर्यावर्त पटना में लिखना प्रारंभ किया। वहां से कुछ दिन बक्सर की जिम्मेवारी मिली। फिर हिन्दुस्तान, आज के बाद 2007 तक प्रिंट मीडिया के लिए कार्य किया। फिर नाता टूटा तो इलेक्ट्रानिक मीडिया का रुख किया। स्टार न्यूज, खबरे आप तक, न्यूज 24, महुआ न्यूज, नक्षत्र न्यूज, ताजा टीवी और फिलहाल कशिश न्यूज के लिए काम कर रहे हैं। इसका जिक्र करते हुए उन्होंने एक बात और बताई। वह दौर भी था जब बैरन चिट्ठी के द्वारा डाक से खबरे जाया करती थी। तब पत्रकार हुआ करते थे। आज के लोग तो खुद को ब्यूरो कहते हैं। कुछ तो ब्यूरो चीफ भी अपने आप को बताते हैं।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : बबलु उपाध्याय अपने चार भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। 26 जनवरी 1970 को उनका जन्म वर्तमान झारखंड के श्यामल (सेन्ट्रल कोल्ड फिल्ड एरिया ) सरकारी अस्पताल में हुआ था। पिता श्रीनिवास उपाध्याय वहीं कोल फिल्ड में कार्यरत थे। 1986 में केके हाई स्कूल श्यामल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। 88 में इंटर व 1991 में बीएससी की पढ़ाई पूरी की। 1992 में आइटीआई से आटो मोबाइल कोर्स किया। स्वयं के रोजगार के लिए उद्यमिता संस्थान से प्रशिक्षण लिया। लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था। जीवन का रास्ता मीडिया की तरफ मुखातिब हो गया। चार भाई बहनों में अन्य तीन सरकारी नौकरी में हैं। आज बबलु उपाध्याय सपरिवार गांव में जा बसे हैं। क्योंकि घर और परिवार की जिम्मेवारी उन्हीं के कंधों पर आ पड़ी है। दो वर्ष पहले पिता श्रीनिवास उपाध्याय जी का स्वर्गवास हो गया। जीवन की गाड़ी अब उनके जिम्मे हैं। जिसके कारण परिस्थितियां बदल गई हैं। लेकिन हौसला अभी भी बरकरार है।

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