बक्सर खबर : मनुष्य के जीवन में बहुत सी विषम परिस्थितियां आती हैं। इससे भयभीत और परेशान होने की जरुरत नहीं है। मनुष्य को धैर्य रखना चाहिए। क्योंकि दुख के बाद ही सुख आता है। शास्त्रीय मत है सुख की प्राप्ति के लिए दुख को बर्दाश्त करना होता है। शास्त्र व साहित्य, दोनों जगह इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं। यहां तक कहा गया है, जो अच्छे कार्य हैं। उनके प्रारंभ में ही कष्ट मिलने लगते हैं। लेकिन उसका अंत सुखद होता है। बुरे कार्य को करने में पहले तो आनंद अथवा सुख का अहसास होता है। लेकिन उसका अंत दुखदाई और अत्यंत पीड़ा देने वाला होता है। यह उपदेश पूज्य जीयर स्वामी जी महाराज ने बुधवार को भागवत कथा के दौरान दिए।
आरा के चंदवा में उपस्थित जन मानस को उन्होंने इसका बहुत ही सहज उदाहरण दिया। आपने देखा होगा, विद्यार्थी जीवन में जो बालक कष्ट सह कर, रुखा-सूखा खाकर पढ़ाई करता है। वह आगे चलकर सुख व आनंद को प्राप्त करता है। जो विद्यार्थी पढ़ाई से भागता है, स्कूल जाने से कतराता है। युवा अवस्था में अपने समय को मौज मस्ती में बर्बाद करता है। उसे लगता है इसी में आनंद है। वह आगे चलकर अपने जीवन में अनेक कष्ट व दुख उठाता है। विश्व में जो भी महान, कर्मठ, तेजस्वी व्यक्ति हुए हैं। उन्होंने अपने जीवन में बहुत से कष्ट उठाए हैं। यह सभी इसके प्रमाण हैं।
अध्यात्म के अनुसार सुख व दुख की परिभाषा बहुत ही व्यापक है। लेकिन आम जीवन में सुख-दुख से आप क्या समझते हैं। सुख का तात्पर्य अनुकुल परिस्थिति से है। दुख का अर्थ प्रतिकूल परिस्थिति से है। आप जैसा चाहते हैं, उस अनुसार जीवन चल रहा है। तो आपको सुख की अनुभूति होती है। जब परिस्थिति आपके विपरीत हो जाती है। तो आप समझते हैं दुख आ गया। यही है सुख-दुख। इस लिए समस्या आने पर विचलित न हों। धैर्य रखें और अच्छे कार्यों का त्याग न करें। भागवत की कथा के माध्यम से शुकदेव जी परीक्षित को यही संदेश दे रहे हैं।
Deepak kumar Deaf
Punjab national Bank,
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