बक्सर खबर : धर्म के द्वारा सत्य, तप, दया और दान इन चारों का आचरण होता है। यही धर्म के चार परिवार हैं। अधर्म के भी चार परिवार हैं – लोभ, अनीति ,कलह और दम्भ। जीयर स्वामी जी महाराज ने शुक्रवार को यह बात कथा – प्रवचन के माध्यम से जन मानस को बताई। स्वामी जी ने कहा धार्मिक व्यक्ति को अपने जीवन में कितना भी दुःख, कष्ट आ जाय फिर भी सत्य, तप, दया और दान का त्याग नहीं करना चाहिये। शास्त्र में बताया गया है कि धर्म और संस्कृति का अपमान करने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता। आज धर्म पर अधर्म का प्रभाव बढ रहा है। इसका कारण कलि का प्रभाव है। स्वामी ने बताया –
– जरासंध के मरने के बाद उनके पुत्र सहदेव ने अपने पिता का मुकुट लेना चाहा था। परन्तु भीम ने मुकुट ले लिया और अपनी तिजोरी में रख दिया। तभी से तिजोरी बन्द पड़ी थी। राजा परीक्षित ने एक दिन उस तिजोरी को खोला। तिजोरी में रखे मुकुट को राजा परीक्षित ने धारण कर लिया और अपना मुकुट रख दिया। राजा परीक्षित के सिर पर रखे स्वर्ण मुकुट में कलि ने अपना आश्रय बना लिया। वहीं अनीति,अन्याय का मुकुट राजा परीक्षित पहनकर शिकार करने निकले। मार्ग में प्यास लग गयी। वहीं पास में आश्रम दिखा। शमीक ऋषि तपस्या में लीन थे। राजा ने जल माँगा परन्तु ऋषि तो ध्यान अवस्था में थे। जल नहीं दिया तो राजा को क्रोध आ गया। कलि के प्रभाव से राजा ने उनके गले में मरे हुए साँप (काला नाग) को उठाकर डाल दिया। वहीं अनीति का मुकुट जिसमें कलि का आश्रय हो गया था। धर्म के उपर अधर्म का वर्चस्व के प्रभाव के कारण राजा परीक्षित को विवश कर दिया। जिसके परिणाम स्वरुप राजा परीक्षित को शाप रूपी (दण्ड) का भागी होना पड़ा।