बक्सर खबर : जिसे भी अपनी गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कराना हो बक्सर आ जाइए। यहां परिवहन विभाग में आप जो चाहे करा सकते हैं। टैक्स में छूट भी मिलेगी और कागजात गलत रहे तो भी रजिस्ट्रेशन हो जाएगा। क्योंकि यहां रजिस्टे्रशन होने के पूर्व उसकी जांच नहीं होती। न तो आपको आरटीपीएस काउंटर जाना है। न मोटर वैकील इंस्पेक्टर आपके कागजात की जांच करेंगे। परिवहन पदाधिकारी की तो जरुरत ही नहीं। यह सारा काम एक बाबू कर देंगे। क्योंकि यहां बाबू ही सबसे बड़ा अधिकारी होता है। यह बात कोई कोरी गप नहीं है। पुलिस की केस डायरी इसकी गवाह है। जिसे न्यायालय के समक्ष भी प्रस्तुत किया गया है। जिसमें इस बात का प्रमाण है। किसी वाहन का पंजीयन इस विभाग का बाबू करता है। इस तथ्य पर पुलिस अवर निरीक्षक, डीएसपी व एसपी तीनों की रिपोर्ट लगी है। घटना बहुत पुरानी नहीं है।
जुलाई 2016 में एक मुकदमा नगर थाने में दर्ज हुआ। लोन पर खरीदी गई गाड़ी परिवहन विभाग में साक्ष्य को दरकिनार कर पंजीकृत कर दी गई। इस कार्य को करने वाला कम्प्यूटर आपरेटर पुलिस की जांच से बच गया। जो कागजात वाहन मालिक ने प्रस्तुत किए। उसकी जांच करने वाले एमवीआई का नाम भी पुलिस की जांच में सामने नहीं आया। पुलिस ने इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेवार कार्यालय के प्रधान लिपिक को माना। जिसके लिए उसे जेल भेज दिया गया। जेल जाने वाले लिपिक संजय त्रिपाठी ने खुद को बेगुनाह बताते हुए सभी के सामने अर्जी रखी। मीडिया से भी मदद मांगी। केस सुलझने के बजाय उलझता चला गया। अंतत: उस शख्स को जेल जाना पड़ा। जो अपने आप को बेगुनाह साबित करने का सबूत नहीं दे सका। लेकिन, पुलिस की रिपोर्ट में जिसे इसका दोषी बताया गया। उसने परिवहन नियम पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या वह कानून बदल गया है? मिलते हैं कल इस खबर के अगले अंक के साथ।