बक्सर खबर : शास्त्र में कहा गया है कि प्रभु का भक्त अनेक कष्ट आने पर भी अन्त समय में प्रभु को ही याद करता है। परन्तु साधारण मानव अन्त समय में वात, पित, कफ से ग्रसित होने पर प्रभु को भूल जाता है। जीयर स्वामी जी ने शनिवार को कथा – प्रवचन के दौरान कहा कि जगत और जगत की वस्तु एवं व्यवहार से आसक्ति मोह को त्याग कर वैराग्य आ जाने से पाप कर्मों का लोप हो जाता है।ऐसा होने पर मनुष्य बंधन से मुक्त हो जाता है। परन्तु वस्तु एव जगत के व्यवहार से आसक्ति( मोह) होने पर मनुष्य बन्धन में जकड जाता है। इस प्रकार राजा परीक्षित द्वारा अन्त समय में भगवान की प्राप्ति के उपाय पूछे जाने पर श्री शुकदेवजी आह्लादित हो जाते है।
शास्त्र में बताया गया है पाप लोहे की हथकड़ी है तो पुण्य सोने की । पाप करने से निकृष्ट योनि में जन्म होता है एवं नरक का भागी होता है। पुण्य करने से स्वर्ग होता है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि असुर एवं मनुष्य दोनों ही यज्ञ करते है। अध्ययन, तप और दान दोनों करते हैं । मनुष्य अपने अन्तः करण की शुद्धि के लिये अध्ययन तथा तप करता है। असुर दूसरों को कष्ट देने के लिये करते हैं। उसी तरह सज्जन पुरुष शक्ति सामर्थ होने पर दुसरों की मदद करते हैं। दूर्जन व्यक्ति शक्ति आ जाने पर लोगों को कष्ट पहुंचाता है। स्वामी जी ने अपन श्री मुख से कहा। व्यक्ति को अंत समय में भगवान का ध्यान करना चाहिए। जैसे राजा परीक्षित शाप मार्जन के लिये अन्त तक सन्मार्ग के रास्ते से ही अपनी मुक्ति चाहते है। संत दर्शन का जीवन में बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। राजा परीक्षित कहते हैं कि मैं कितना बड़ा भाग्यशाली हूँ कि सभी राजा महाराजा मेरी मृत्यु को देखने आये हैं। मैं सभी का स्वागत करता हूँ आप सभी लोग मेरे को अपना आशीर्वाद दिजिए । संतो की कृपा हो जाय तो मेरा उद्धार हो जायेगा । इस घटना से लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। हमारे यहां तो दूर्जन को भी सज्जन बनाने की परंपरा है। आवश्यकता है उचित संगत व प्रभु के शरण में जाने की।