बक्सर खबर : मन को नियंत्रित कैसे किया जाए? यह प्रश्न मानव जीवन में हमेशा सामने आता है। कपिल मुनी जी से यह प्रश्न उनकी मां ने किया था। ऋषिवर ने बताया सतसंग मन को नियंत्रित करने का सबसे सरल मार्ग है। सतसंग उसी को कहते हैं जिससे सत्य का बोध हो जाए। जो मन को परमात्मा के नजदीक ले जाए। इसके अलावा योग से भी मन को नियंत्रित किया जा सकता। यह बातें मंगलवार को भागवत कथा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक श्रीकृष्णचन्द्र शास्त्री उपाख्य ठाकुर जी ने कहीं। उनकी कथा इन दिनों सीताराम विवाह महोत्सव में चल रही है। मन में बुराई, परिवार में कलह आदि की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा। भगवान शंकर इसके सबसे बड़े निवारक हैं। वैदिक मान्यता के अनुसार शिव विश्वास के स्वरुप हैं। माता भवानी श्रद्धा का स्वरुप हैं। उनके ज्येष्ठ पुत्र कार्तिक महाराज पुरुषार्थ के प्रतीक हैं। गणेश जी विवेक व बुद्धि के प्रतिमान हैं। अर्थात विश्वास और श्रद्धा रहने पर ही मनुष्य को आनंद की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही साथ जहां विश्वास, श्रद्धा, पुरुषार्थ व विवेक का समावेश होता है। वहां कभी भी कोई बुराई, दुख प्रवेश नहीं करता। इसी लिए शिव दरबार को समता व सुमती का उदाहरण कहा जाता है। बदलते परिवेश की चर्चा करते हुए ठाकुर जी ने कहा आज कानवेंट स्कूल का कल्चर बच्चों को संस्कृति से विमुख कर रहा है। इस लिए जरुरी है उन्हें भी कथा प्रवचन, संस्कारों का ज्ञान प्रारंभ से दिया जाए। घर में पूजा का स्थान कहा हों। इसके लिए उन्होंने कहा घर की सबसे सुंदर जगह को पूजा का स्थान बनाए। परमात्मा को वैसी जगह दें जो सबसे बेहतर हो। इस बात भी ध्यान रखें। बारह अंगुल से बड़ी मूर्ति पूजा घर में नहीं रखनी चाहिए। घर में जो बनाए उसे पहले परमात्मा को भोग लगाएं। अर्थात ऐसे आहार घर में बनाए और ग्रहण करें जो भगवान को अर्पित करने योग्य हो। इस लिए आपने देखा और सूना होगा। मंदिर, पुण्य कार्य के निमित बनने वाले भोजन को लोग प्रसाद कहतें है। चलिए भोजन कर लें, प्रसाद ग्रहण कर लें। खाना शब्द का प्रयोग वैष्णव जनों को नहीं करना चाहिए।