बक्सर खबर : वगैर आसन के पूजा करना शास्त्र में वर्जित है। ध्यान पूजा करने वाले व्यक्ति को हमेशा उचित आसन का प्रयोग करना चाहिए। इससे शक्ति का संचार होता है। यह उपदेश पूज्य संत लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने ( कथा – प्रवचन ) के दौरान सोमवार को दिए। इसकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा जप, तप, पूजा – पाठ एवं ध्यान करने के लिय आसन का दैनिक जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। आसन का आकार ( Size ) का भी महत्व है,किस आकार का आसन सबसे श्रेष्ठ है – (3 × 2) या (2×2) या (2 × 1•5) का मतलब तीन फीट लम्बा और दो फीट चौड़ा या दो फीट लम्बा और दो फीट चौड़ा या दो फीट लम्बा और डेढ़ फीट चौड़ा होना चाहिये।
स्वामी जी महाराज ने कहा पूजा अर्चना करते समय मनुष्य में एक विशेष प्रकार की शक्ति का संचार प्रकाशित होता है । इसी लिए आसन का बहुत बड़ा महत्व है। सबसे श्रेष्ठ और सभी के लिये सुगम आसन कम्बल ( भेड़ के बाल ) बताया गया है। कर्म सिद्धि के लिए किये जाने वाले जप, तप और ध्यान में कम्बल का आसन सर्वोच्च लाभप्रद सिद्धदायक होता है। साथ ही सुती वस्त्र के आसन पर गृहस्थ को पूजा नहीं करनी चाहिए। इसकी मनाही है। शास्त्र में यह भी बताया गया है कि साधक को बिना आसन के पूजा – पाठ, जप इत्यादि नही करना चाहिये, ऐसा करने से इसका पूर्ण फल पृथ्वी में समाहित हो जाता है। साधक को पूजा का कोई लाभ नहीं मिल पाता। खाली भूमि (पृथ्वी) पर बैठकर पूजा, पाठ, जप करने से मनुष्य को दरिद्रता की प्राप्ति होती है । पत्थर के आसन पर बैठकर पूजा पाठ करने से मनुष्य को अत्यधिक रोग की प्राप्ति होती है। लकड़ी के आसन पर बैठकर पूजा पाठ करने से दुःख और अशांति की प्राप्ति होती है । तिनके के आसन पर बैठकर पूजा पाठ करने से धन की हानि होती है । अगर कंबल का आसान नहीं हो तो कुश के आसन का उपयोग करना चाहिए। यह लाभदायक बताया गया है।
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