शहीद आइपीएस रविकांत को भूल गयी मतलबी दुनिया

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बक्सर खबर : शहीद शब्द सुनने मात्र से वीरों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। समझदार और पढ़े लिखे लोग श्रद्धा भरी नजर से उस वीर के चित्र को देखते हैं। लेकिन, जिस मिट्टी में पला-बढ़ा कोई सपूत शहीद हो जाए और जिले के लोग उसे भूल जाए तो कितना अजीब लगता है। ऐसा ही हुआ है शहीद रविकांत सिंह के साथ। जिले के सिमरी प्रखंड अंतर्गत दुल्हपुर गांव निवासी तारकेश्वर सिंह के पुत्र रविकांत 1987 बैच के आइपीएस अधिकारी थे। आसाम के तिनसुकिया जिले में बतौर एसपी तैनात थे। बिहार टाइगर के नाम से मशहूर इस शेर ने उल्फा उग्रवादियों के नाक में दम कर रखा था। फिर वही हुआ। सियारों के झुंड ने 16 मई 1996 को शेर पर हमला बोल दिया। अंगरक्षकों के साथ आवास से कार्यालय जाने के दौरान उग्रवादी हमले में 34 वर्ष के तेज तर्रार आइपीएस अधिकारी शहीद हो गए। 9 जनवरी 1962 को जन्में इस शहीद की वीर गाथा का आम लोगों की नजर में अंत हो गया। जिस दिन उनके साथ यह घटना हुई। उसी दिन पहली बार तेरह दिन के लिए प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी शपथ ले रहे थे। इस पल को परिवार वाले आज तक भूल नहीं सके हैं।
शिक्षा से लेकर नौकरी करने तक रविकांत से जो भी मिला। सबने उनका लोहा माना। पहली तैनाती कोकाझार जिले में बतौर एसपी हुई। उनका एक ही अभियान था। उग्रवादी या तो आत्म समर्पण कर समाज की मुख्य धारा में शामिल हो अथवा अंजाम को तैयार रहें। अपनी सेवा के दौरान आसाम में सबसे तेज पुलिस पदाधिकारी के रुप में उनकी गिनती होने लगी। कोकाझार जिले में दो हजार से अधिक उग्रवादियों ने हथियार डाले और आत्म समर्पण कर दिया। सरकार की नजर में रविकांत हीरो बन गए और उग्रवादियों की नजर में काल। अप्रैल 1995 में उन्हें तिनसुकिया जिले का एसपी बनाया गया। उनका यह अभियान और तेज हो गया। जगह-जगह उनके नाम के पोस्टर उग्रवादी चस्पाने लगे। उनकी धमकी मिलने लगी। इतना सबकुछ होने के बावजूद भी राज्‍य  व केन्द्र की सरकार ने उन्हें तिनसुकिया से नहीं हटाया। इधर दुश्मन उनपर नजर रखने लगे। रविवार का दिन था। बुलेट प्रूफ गाड़ी में चलने वाले रविकांत उस दिन सामान्य गाड़ी से कार्यालय जा रहे थे। पीछे स्कार्ट पार्टी भी थी। होनी को कुछ और ही मंजूर था। घात लगाए बैठे दुश्मनों ने बम और गोलियों की बारिश उनके उपर कर दी। चालक समेत रविकांत शहीद हो गए। देखने वालों ने बताया कि शहीद हो जाने के बाद भी उग्रवादियों ने उनके शरीर पर दो सौ चक्र से अधिक गोलियां दागी। पर भारत मां का वह बेटा नौकरी को कमाई का जरिया समझने वालों के लिए सीख देकर चला गया।
उनके पिता तारकेश्वर सिंह दुल्हरपुर उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक रहे हैं। जब उनसे बात होने लगी तो एक पिता ने भरे हुए गले से बेटे की वीर गाथा बतायी। अपने पांच भाई बहनों में रविकांत सबसे छोटे थे। गांव के मध्य व उच्च विद्यालय से शिक्षा प्रारंभ करने वाले होनहार को सरकार से छात्रवृति मिलती थी। इसी बीच 1974 में उनका चयन नेतरहाट विद्यालय के लिए हो गया। जहां से शिक्षा पूरी करने के बाद वे पिरोरी मल कालेज दिल्ली चले गए। वहां एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ ही प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करते रहे। पहली बार 1986 में दिल्ली पुलिस स्पेशल ब्रांच के आई पीएस अधिकारी के रुप में उनका चयन हुआ। जिसमें उन्होंने योगदान नहीं किया। 1987 में दुबारा परीक्षा दी और आइपीएस अधिकारी के रुप में उनका चयन हुआ। हैदराबाद में प्रशिक्षण लेने के दौरान उन्हें गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। बावजूद इसके इन्होंने नौकरी नहीं ग्रहण की। आइएएस बनने की चाह में तीसरी बार परीक्षा दी। इस बीच उनका स्वास्थ ऐसा खराब हुआ कि वे मेन्स में भाग नहीं ले सके। इसी बीच 1988 में उनकी शादी संगीता से कर दी गयी। जिसके बाद उन्होंने आसाम कैडर के आइपीएस अधिकारी के रुप में नौकरी शुरू कर दी।
सच्चे राष्ट्र भक्त ने जब अंतिम सांस ली। उसके अगले दिन विशेष विमान से उनका शव पटना एवं वहां से सड़क मार्ग पर पैतृक गांव दुल्हपुर लाया गया। उनकी दिलेरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नेशनल सीटीजन एवार्ड के लिए वर्ष 1995  में ही उनका चयन हो गया था। उनके नहीं होने की स्थिति में मां वैदेही देवी ने यह पुरस्कार 23.12.1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के हाथों ग्रहण किया। उनकी मृत्यु के बाद जो भी आइएएस व आइपीएस अधिकारी इस जिले में आता था। अपने शहीद सीनियर के पिता और परिवार का हाल-चाल जरुर लेता था। लेकिन, अब नौकरी करने वाले अधिकारियों में फर्ज का भाव नहीं रहा न ही वह संवेदना। अब इनका हाल लेने कोई उनके पिता से मिलने नहीं जाता। ऐसा नहीं है कि श्री सिंह किसी की रहम के मोहताज हैं। उनके ज्‍येष्ठ पुत्र श्रीकांत सिंह डीएसपी थे। जो अब सेवा निवृत हैं। उनके दूसरे पुत्र चंन्द्रकांत सिंह सफल व्यवसायी हैं। खुद तारकेश्वर बाबू एक कुशल शिक्षक व जीवट इंसान है। जिन्होंने अपना होनहार बेटा खो देने के बाद भी दुनिया को यह एहसास नहीं होने दिया कि उनको इसका गम है। सच ही कहा कि किसी ने वीर की शहादत पर पिता को गर्व होता है दुख नहीं।
नेशनल सीटीजन एवार्ड
नेशनल सीटीजन एवार्ड

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