बक्सर खबर : राजनीतिक यारी का टूटना कोई नयी बात नहीं है। पर वह यारी जिसके लिए लोग दल भी बदल लें टूटे तो उसकी चर्चा जरुर ही होती है। हम जिस राजनीति यारी की बात कर रहे हैं। वह डुमरांव की है। नेता जी को सरकारी पार्टी का टिकट मिला। एक बाबा का इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा। चुनाव लडऩे के साथ ही नेता जी ने एक और बाबा को अपना साथी बनाया। दोस्ती इतनी परवान चढ़ी की बाबा ने अपने विधायक साथी के लिए अपना दल भी छोड़ उनकी पार्टी का दामन थाम लिया। जोड़ी राम-रहीम वाली हो गयी। जहां दिखे साथ-साथ। हालात बदले पांच साल का समय वैसे ही गुजर गया जैसे गुजरता है। इस समय अंतराल के बीच दोनों नेता चिकने और चमकीले हो गए। पर समय कहा हमेशा एक समान रहता है। एक नेता को पार्टी ने चुनाव लडऩे का मौका नहीं दिया। उन्होंने दल बदला व चुनाव भी लड़े। पर क्या करते, पैदल हो गए। वहीं उनके दूसरे नेता साथी उलझन में पड़े रहे। क्या करें, कैसे करें, कहां जाए। यह पहेली उनको परेशान करती रही और वे सरकारी दल में ही अपने बचाए रह गए। लेकिन, इस खेल में उनकी यारी में दरार पड़ गयी। पूर्व विधायक जी ने कुछ दिन पहले मकरसंक्रांति का भोज दिया। उनके साथी वहां नहीं गए। अब इनके यहां भी परिवार में एक मांगलिक उत्सव आया। विधायक जी भी नहीं दिखे। हालाकि यह कोई नहीं जानता यह यारी चल भी सकती है और नहीं भी। लोगों में चर्चा इस बात की है आखिर यारी टूट कैसे गयी।