सबसे बड़ा घाघ कौन, दफ्तर या थाने का बड़ा बाबू

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बक्सर खबर : सावन का पहला मंगलवार। बक्सर खबर का दूसरा मंगलवार। अर्थात हमारे साप्ताहिक कालम पोल- खोल का दूसरा मंगलवार। आज हमारा सवाल जनता से है। सबसे बड़ा घाघ कौन है ? प्रशासन के दफ्तर में काम करने वाला बाबू या पुलिस थाने की कमान संभालने वाला बड़ा बाबू। यह प्रश्न एक दिन का नहीं है। आए दिन इस सवाल से सभी को दो चार होना होता है। दोषी जो भी हो, सबके सामने यह विषय आना ही चाहिए। आखिर दफ्तर किसी का हो। परेशानी का सामना तो आम जन को ही करना होता है। पिछले कुछ दिनों में जिले के कई कार्यालयों में तैनात बाबू इस घेरे में आए हैं। भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें जेल जाना पड़ा है। ऐसे में पुलिस की जांच पर सवाल उठते रहे हैं। यहां हम उसका उल्लेख करना चाहते हैं।

सवा करोड का घोटाला (बक्सर) :कुछ दिन पहले समाहरणालय की नजारत में सवा करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। उस लिपिक को जेल भेज दिया गया। संबंधित एकाउंट का कर्ताधर्ता था। चेक और उसका कैश बुक दोनों उसके पास थे। कर्मचारी जेल गया, उस विभाग का प्रधान लिपिक अर्थात जिला नाजिर आज भी निलंबन झेल रहे हैं। जिसे दोषी करार दिया गया। वह कर्मचारी पंकज फिलहाल जेल में है। निगरानी विभाग मामले की जांच कर रही है। लेकिन जो इस विभाग का प्रधान हैं अथवा उनके द्वारा जिसे नजारत का प्रभारी पदाधिकारी बनाया गया है। वे इस जांच से बाहर रहे। पुलिस ने हमदर्दी दिखाई या इस तरह का कानूनी प्रावधान है। यह तो कागजात का अवलोकन करने वाले जाने। पंकज नाम के कर्मचारी ने सवा करोड़ रुपये की निकासी एक बार में नहीं की थी। उसे एक लंबे समय अंतराल के दौरान पांच बार में निकाला गया था। इस अवधि के दौरान संबंधित नजारत प्रभारी का ध्यान उस तरफ क्यों नहीं गया। जबकि एक करोड़ रुपये से अधिक की राशि उस खाते से निकाल ली गई थी। बगैर कोई काम हुए इतनी मोटी राशि निकली, यह स्वयं एक अटपटी बात है। दूसरे पांच बार निकासी हुई उसका कैश पंजी में समायोजन नहीं हुआ। यह सब देखने वाले अधिकारी इतने लापरवाह कैसे हो गए। पुलिस ने यहां जिम्मेवार उसे माना। जो इस कागजात का जिम्मेवार था। फिर दूसरे मामले में यह फार्मूला बदल कैसे गया। कहने का तात्पर्य परिवहन विभाग का ताजा मामला है।

यज्ञ का पोस्टर

बाबू गए जेल संबंधित आपरेट अभी भी है जद से बाहर
बक्सर : परिवहन विभाग में किसी भी गाड़ी का निबंधन तभी होता है। जब कागजात आरटीपीएस काउंटर पर जमा होता है। उसकी जांच विभाग द्वारा नियुक्त एमवीआई करते हैं। जब यहां निबंधन के दौरान घालमेल की प्राथमिकी दर्ज हुई। पुलिस ने प्रधान सहायक को जेल भेज दिया। संबंधित कम्प्यूटर आपरेटर इस जद से अभी भी बाहर है। जांच के दौरान पता चला। कार्यालय से वह कागजात भी गायब हैं। जिसके आधार पर कम टैक्स लगाकर रजिस्ट्रेशन हुआ। अर्थात यह पूरी संभावना है उस कागजात को उन लोगों ने गायब किया। जिन्होंने टैक्स चोरी में वाहन मालिक की मदद की। साथ ही यह भी बात सामने आती है। जिसने गाड़ी का निबंधन कराया। उसने भी गलत कागजात प्रस्तुत किया। तभी विभाग ने उसका चालान कम काटा। यह दोनों मामले यह साबित करते हैं। पुलिस की जांच किसी के लिए कुछ और बोलती है। किसी के लिए कुछ और। ऐसे मामलों में अगर वरीय अधिकारी ईमानदार होतो इस जाल में फंसे लोगों को न्याय की उम्मीद रहती है। अन्यथा सिर्फ कागज पर मुहर लगाने वाले अधिकारी रहें तो कोई करोड़ो खाते से निकाल लेगा। कोई अपनी झूठी रिपोर्ट को सच बता वरीय अधिकारी की मुहर लगा लेगा। लेकिन भ्रष्टाचार के इस दौर में ईमानदार को अपनी सच्चाई का सबूत तो देना होगा।

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