बक्सर खबर : पुलिस अपनी कार्यशैली को लेकर हमेशा से निशाने पर रही है। बावजूद इसके मानवीय पहलू पर भी इनका ही सबसे अधिक योगदान होता है। दुर्घटना में घायल पचास प्रतिशत लोगों को यही अस्पताल पहुंचाते हैं। बीस जनवरी की घटना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। रात के वक्त डुमरांव थाने का गश्ती दल निकला था। स्टेशन के पूर्वी क्रासिंग के पास पटरी किनारे घायल युवक पड़ा था। पहले तो चर्चा हुई इसे रेल पुलिस को सौंप दिया जाए। लेकिन, खून से लथ-पथ युवक को देख पुलिस टीम ने तुरंत अपनी गाड़ी में लादा और अस्पताल पहुंच गए। उसके सर में गंभीर चोट थी। थाने की टीम ने अपनी खर्च से उपचार कराना प्रारंभ किया। चौबीस घंटे बाद उसे होश आया। युवक ने अपना नाम धनेश कुरजू बताया। बंगाल के बड़हरा का रहने वाला नौजवान फरक्का एक्सप्रेस से दिल्ली जा रहा था। जेनरल डब्बे में बहुत भीड़ थी। वह गेट पर बैठा था। अचानक गिर पड़ा। वहां कई घंटे तक अचेत पड़ा रहा। भगवान की शायद कृपा थी। उसे बचना था, तभी तो पुलिस की नजर उसपर पड़ी। अगर कुछ और विलंब हुआ होता तो अत्यधिक खून बहने के कारण उसकी मौत हो जाती। डाक्टरों ने उसे दो दिनों तक अस्पताल में रखा। तेईस तारीख को उसे अस्पताल से छुट्टी मिली। थानाध्यक्ष सुबोध कुमार ने घायल युवक के लिए कपड़े खरीदे। पहले के पकड़े फट चूके थे। साथ ही पांच हजार रुपये आर्थिक मदद देकर उसे एक व्यक्ति के साथ अपने घर के लिए ट्रेन से रवाना किया। यह है बिहार पुलिस का मानवीय चेहरा। जाते-जाते धनेश ने बिहार पुलिस को धन्यवाद कहा।
सराहनीय योगदान ।
सराहनीय भूमिका ।