बक्सर खबर : वक्त बदला है। आज मीडिया सर्व सुलभ हो गयी है। आज पत्रकार ढूंढने पर कई मिल जाते हैं। वह दौर था जब इक्का-दुक्का लोग नजर आते थे। खबर डाक से पटना भेजी जाती थी। जिसके कारण दो से तीन दिन बाद खबरें छपती थी। समय बदला फैक्स का दौर प्रारंभ हुआ। डाक व तार घर में यह सुविधा थी। वहां स्केल से नाप कर पांच इंच की खबर के छह रुपये लिए जाते थे। कागज पर छोटे-छोटे अक्षर में हम लोग चार से पांच खबर लिख देते थे। जिसके एवज में तेरह रुपये चुकाने होते। उस दौर का दर्द बयां करते पत्रकार साथी रामइकबाल ठाकुर। फिलहाल वे राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के लिए लिखते हैं।
ठाकुर जी का परिचय
बक्सर : रामइकबाल ठाकुर, पिता श्री परशुराम ठाकुर, ग्राम सिकरौल, प्रखंड चौसा, जिला बक्सर। हाल मुकाम चीनी मिल बक्सर। इनका जन्म 20 जनवरी 1963 को हुआ। गांव के प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा प्रारंभ करने वाले ठाकुर जी सिकरौल हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। एमवी कालेज से स्नातक किया ।
जीवन का सफर
बक्सर : कालेज का दौर समाप्त होते ही वे राजनीतिक पारी खेलने निकल पड़े। जनता दल में उन्होंने अति पिछड़ा प्रकोष्ठ का दायित्व संभाला। जिंदा बाद, मुर्दाबाद के बीच परिवार की जिम्मेवारी सामने आयी। वे संस्कृत विद्यालय में शिक्षक हो गए। सरकार से मान्यता नहीं होने के कारण वहां भी आंदोलन का रुख अख्तियार किया। राज्य भर से संस्कृत शिक्षक पटना में जमा हुए। ठाकुर इस आंदोलन में आगे थे। सो प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने लाठियों से पीटा और जेल में बंद कर दिया। लंबे समय तक वे हजारीबाग केन्द्रीय कारा में बंद रहे। वहां से निकलने के बाद वापस राजनीति की गली में आ गए। यहां कुछ पत्रकारों से संपर्क हुआ। लिखने का कौशल उन्हें बेहतर आता था। जिसे देखकर तत्कालीन दौर के पत्रकारों में केके ओझा, शिशिर संतोष व मुखदेव राय ने उन्हें पत्रकारिता से जोड़ा। 1995 में प्रभात खबर से उनका सफर प्रारंभ हुआ। वर्ष 2003 में उन्होंने हिन्दुस्तान समाचार पत्र में लिखना प्रारंभ किया। कुछ वर्षो से फिलहाल वे राष्ट्रीय सहारा के साथ कलम चला रहे हैं।
क्या खोया-क्या पाया
बक्सर : पत्रकारिता के दौर में आपने क्या खोया-क्या पाया ? यह प्रश्न पूछते ही उनके चेहरे का रंग बदल गया। मन खटास से भर गया। भरे मन से उन्होंने कहा, सबके साथ उठना बैठना अच्छा लगता है। जीवन में कुछ हाथ तो नहीं लगा। परंतु कई बदलाव दिखे। बक्सर जिला बना, कुछ नए प्रखंड बने। जैसे चौसा, केसठ, चौगाई। इसके अलावा तब नगर में सिर्फ दस वार्ड हुआ करते थे। कुछ वर्षो बाद उसकी संख्या बढ़कर चौबीस हो गयी। फिलहाल नगर के वार्ड की संख्या चौतीस हो गयी है। तब शहर में शांति हुआ करती थी। अब व दूर चली गयी है। पहले एक खबर पर कार्रवाई होती थी। दोषी अधिकारी किसी के सामने आने से कतराते थे। आज खबर पर कार्रवाई तो दूर जिसके खिलाफ शिकायत आती है, वह धमकी देने पहुंच जाता है। इस क्षेत्र में बहुत गिरावट देखी गयी है।