बक्सर खबर : देश बदल रहा है। उसकी रफ्तार तेज हो या धीमी। संस्कार की नींव जरुर कमजोर हो रही है। इस परंपरा में नई जान डालने के लिए जिले की लड़कियों ने युवाओं को सीख दी है। आज जहां यज्ञोपवित धारण (जनेऊ) करने से लड़के कतरा रहे हैं। वहीं नावानगर प्रखंड के मणिया गांव के आस-पास की अनेक छात्राएं जनेऊ धारण करती हैं। हिन्दू धर्म में वैसे तो कन्या के द्वारा जनेऊ धारण करने की मनाही है। लेकिन, इनका यज्ञोपवित संस्कार करने वाले आचार्य कहते हैं। ऐसा किसी शास्त्र में नहीं मिला। कुछ कारणों से इसकी मनाही है। पर इन छात्राओं ने उसका हल निकाल रखा है। उसकी चर्चा हम आगे करेंगे। फिलहाल आप पाठकों को इतना बता दें। प्रति वर्ष वसंत पंचमी अर्थात सरस्वती पूजा के दिन जनेऊ संस्कार होता है। जिसमें छात्राएं वैदिक परंपरा अनुसार इसे धारण करती हैं।
कब शुरु हुई परंपरा
बक्सर खबर : मणिया गांव में 1972 में दयानंद आर्य हाई स्कूल की स्थापना हुई। संस्थापक आचार्य विश्वनाथ सिंह की चार बेटियां थी। मंजू, उषा, गीता व मीरा। उन्होंने विद्यालय स्थापना के प्रथम वर्ष में सरस्वती पूजा का आयोजन किया। तीन दिनों तक हवन पूजन आदि हुआ। वसंत पंचमी के दिन अपनी चारो बेटियों को यज्ञोपवित संस्कार करा दिया। तब ये परंपरा इस विद्यालय में चली आ रही है।
इस वर्ष पांच ने धारण किया जनेऊ
बक्सर खबर : बुधवार अर्थात 1 फरवरी को जब बसंत पंचमी मनी तो पांच कन्याओं ने जनेऊ धारण किया। ममता कुमारी, नीतू कुमारी, इंदु कुमारी, धर्मशीला कुमारी, रेखा कुमारी। आचार्य हरिनरायण व सिद्धेश्वर आर्य ने इन सभी को जनेऊ धारण कराया।
कहती हैं छात्राएं
बक्सर खबर : दयानंद आर्य हाई स्कूल को अब सरकारी मान्यता मिल चुकी है। यहां पढऩे वाले छात्राएं बताती हैं। वे धर्म की रक्षार्थ जनेऊ धारण करती हैं। जीन दिनों में इसे धारण करने की मनाही होती है। हम इसे पवित्र स्थान पर रख देते हैं। रजस्वला धर्म बीत जाने के बाद पुन: नया जनेऊ स्वयं बनाते और पहनते हैं। यह है यहां की छात्राओं का जुनून। वैसे मणिया गांव के इस विद्यालय में आस-पास के आधा दर्जन गांवों से छात्राएं पढऩे आती हैं। जो प्रति वर्ष बसंत पंचमी को इस यज्ञोपवित संस्कार में शामिल होती हैं। हवन पूजा में जिन कन्याओं का विवाह नहीं हुआ होता। अर्थात जो अपने गांव में रह रही हैं। वे सभी शामिल होती हैं और धर्म रक्षा का संकल्प लेती हैं।