बक्सर खबर : कितना मिथ्या सोचता है मनुष्य। उसे पता है आए हैं तो जाना है। फिर भी इस संसार को अपना मानकर बैठा है। सबकुछ जानने के बाद भी लोग वास्तविकता से अनजान बने हुए हैं। आपको हमें सभी को ज्ञात है। संसार नश्वर है, पर कुछ समझने को तैयार नहीं। यही प्रश्न राजा परीक्षित ने सुकदेव जी महाराज से पूछा। जब मनुष्य को यह ज्ञात हो उसका अंत समय नजदीक है। वैसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए? सुकदेव जी कहते हैं। राजन लोगों को प्रभु का ध्यान करना चाहिए। भगवान अर्थात स़ृष्टि के रचइता। जिन्होंने सबका श्रृजन किया है। लेकिन लोग इस सच्चाई को समझने का प्रयास नहीं करते। आरा के चंदवा में स्वामी जी ने बुधवार को यह बातें कहीं।
ज्ञान की वर्षा करते हुए उन्होंने जनमान से इस सत्य से अवगत कराया। जैसे – आप ट्रेन में सवार हैं। आप मजे में सो रहे हैं। तो क्या आप चल नहीं रहे। आप इस संसार में आए हैं तो कुछ करें या न करें। आपकी यात्रा प्रारंभ है और उसका अंत भी निर्धारित है। जो मान्यवर इस सत्य का ध्यान करें। उसका ध्यान करें, जो सदगती देने वाला है। उसके बगैर कुछ भी संभव नहीं। अर्थात चलते, हंसते, रोते-गाते, उठते-बैठते, हर परिस्थिति में श्री हरी का ध्यान करें। सुकदेव जी की यह बातें हर मनुष्य पर लागु होती है। रही बात प्रभु का ध्यान करें कैसे। तो इसके लिए अपने मन को उनके चरणों में समर्पित करना होगा। आप जो करते हैं, सुख में दुख में, हार या जीत में सबके लिए उनको याद करें। स्वत: आपका ध्यान उनकी ओर चला जाएगा। तभी कल्याण संभव है। भागवत वहीं महान ग्रंथ हैं। जो मानव जीवन के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। मन को धर्म कार्य में लगाने के लिए भागवत का श्रवण अथवा उसके एक भी श्लोक को जीवन में उतार लेना मात्र ही जीवन का उद्धार संभव बताया गया है। अत: मानव को सबसे पहले अपने अभिमान का त्याग करना चाहिए। मानवता के लिए यह सबसे जरुरी है। धर्म यही शिक्षा देता है।