अपनी ही धुन में मस्त रहने वाले पत्रकार – अरुण सिंह

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बक्सर खबर : जिले में कुछ ऐसे भी पत्रकार हैं। जिन्होंने सिर्फ अपने काम से मतलब रखा। न किसी की प्रशंसा न किसी की आलोचना। जहां हैं वहां मस्त हैं। एक दिनचर्या बनी हुई है। घर परिवार और समाज के साथ संबंध निभाते हुए कलम भी चलाते हैं। पेशे से इमानदारी इतनी की कंपनी को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। हम बात कर रहे हैं अरुण सिंह की। जो हिन्दी समाचार पत्र हिन्दुस्तान के संवाददाता हैं। अपने गृह प्रखंड नावानगर से वे खबरें लिखते हैं। बक्सर खबर ने अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के लिए बात की। मस्त मिजाज के धनी अरूण किताब की तरह खुलते गए। वे अपने काम से खुश हैं। लेकिन परिवार की जरुरत और हालात की मजबूरी उनको भी टीस देती है। चाह कर भी गांव-घर से दूर नहीं जा सके। प्रस्तुत है उनका जीवन परिचय।

पत्रकारिता जीवन
बक्सर : अरुण सिंह बताते हैं। इस पेशे में आने से पहले दौ नौकरी की। मेटा प्लेनर्स कंपनी में सर्वे का कार्य करते थे। पटना में कार्यालय था। सोन नदी से जुड़े क्षेत्रों पर काम करना था। वहां से नाता टूटा तो दिल्ली गए। लेकिन परिवार की जरुरत ने वापस बुला लिया। यहां वर्ष 2000 में हिन्दुस्तान से जुड़े। उस समय मुखदेव राय जिले के संवाददाता हुआ करते थे। उनसे संपर्क किया और पटना पहुंचे। संपादक गिरीश मिश्रा जी थे। तीन लोगों की एक साथ नियुक्ति हुई। नावानगर से अरुण सिंह, डुमरांव से अनिल ओझा और इटाढ़ी से राकेश कुमार। इस दौरान परिवर्तन की बयार में सबने जरुरत के अनुसार ठिकाना बदला। अरुण जहां थे वहीं रहे। जब बक्सर में कार्यालय खुला तो उन्हें जिला संवाददाता के तौर पर बुलाया गया। लेकिन अपनी मजबूरी के कारण वे गृह प्रखंड नहीं छोड़ पाए। जब कभी जरुरत पड़ी डुमरांव में भी सेवा दी। लेकिन नावानगर को वे छोड़ नहीं पाए। आज भी हिन्दुस्तान के समर्पित संवाददाता के रुप में सेवा दे रहे हैं।

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व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : अरुण सिंह नावानगर के भदार गांव के निवासी हैं। पिता सरयू सिंह बिहार पुलिस के सुबेदार थे। उनके तीन पुत्रों में अरुण सबसे छोटे थे। 22 जनवरी 1966 को इनका जन्म हुआ। गांव से पढ़ाई कर निकले तो आरा जैन कालेज से इंटर किया। पटना एएन कालेज से वर्ष 1986 में स्नातक किया। वहीं से इतिहास विषय में पीजी की डिग्री ली। नौकरी करने भी गए। इसी दौरान 1984 में उनकी शादी हो गई। बड़े भाई झारखंड पुलिस के सब इंस्पेक्टर हैं। बीच के भाई का बीमारी के कारण स्वर्गवास हो गया। मजबूरन अरुण को अपनी नौकरी छोड़ गांव आना पड़ा। फिर वे यहीं के होकर रह गए। अब वे पत्रकार होने के साथ तीन पुत्रों एवं एक बेटी के पिता हैं।

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