बक्सर खबर । शिक्षा और ज्ञान में अंतर है। हिंदी के ये दो शब्द अपना-अपना अर्थ रखते हैं। मोटा-मोटी समझें कि शिक्षा विषयगत है और ज्ञान जीवनगत। शिक्षा हमें विषय आधारित ज्ञान देती है, जबकि ज्ञान से व्यक्तित्व संवरता है। शिक्षा का संबंध समझ से है, वहीं ज्ञान का पूर्ण समझ से। और ख्याल रहे कि आज के दौर में हम बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं, ज्ञान नहीं। अंगे्रजी स्कूलों में बच्चों को अंग्रेजियत की शिक्षा मिल रही है।
वहां हिंदी-संस्कृत और नैतिक शिक्षा जैसे विषयों पर फोकस नहीं है। इसका नतीजा है कि बच्चे शिक्षित तो हो रहे हैं, लेकिन ज्ञानवान नहीं। यही वजह है कि आज की पीढ़ी जल्दी से भटक जा रही है। इस भटकाव से बचने के लिए जरूरी है कि बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ ही भारतीय मूल्यों का ज्ञान कराया जाए। अपनी संस्कृति के साथ वे आधुनिक रूप से शिक्षित हों तभी कामयाब और बेहतर इंसान बनेंगे। यह काम नया बाजार के सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम स्थित श्रीराम जानकारी सरस्वती विद्या निकेतन में हो रहा है। बक्सर खबर की टीम ने वहां का दौरा किया तो पाया कि सीबीएसई बेस्ड सिलेबस के साथ ही यहां बच्चों को भारतीय संस्कृति का ज्ञान भी कराया जा रहा है। जितनी दुरूस्त अंग्रेजी है बच्चों की उतनी ही दुरूस्त हिंदी और संस्कृत भी। महंत राजाराम शरण के सख्त अनुशासन और प्रिसिंपल डॉ ए के दूबे के दिशा-निर्देश पर चौंतीस शिक्षक करीब एक हजार बच्चों को ज्ञान की कसौटी पर कस रहे हैं। खास बात यह कि सारे शिक्षक टें्रड ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट। एक से दसवीं कक्षा तक पढ़ाई वाले इस स्कूल की फीस भी काफी कम है। पहली कक्षा के बच्चों की फीस महज साढ़े पांच सौ रूपये और बस का किराया पांच सौ रूपये महीना। एक सवाल पर महंत जी ने बताया कि ये बच्चे हमारे समाज के हैं। हमारे बक्सर के हैं। इन्हें संवारने, ज्ञानवान बनाने के लिए आश्रम की तरफ से स्कूल को मदद की जाती है। हमारी मंशा है कि हमारे बच्चे ज्ञानवान बनें, शिक्षित नहीं। इसके लिए मुझसे जो बन पड़ेगा, करूंगा।