बक्सर खबर। बतकुच्चन गुरू की बातें अलबेली होती है। तार्किक की भी। गुरुवार की शाम वे मिले तो जनता पर अपनी भड़ास निकाल रहे थे। ताल-ठोक दावा कर रहे थे। नेता, खबरा है, ओकरा सबक सीखाना है, एकरा के औकात दिखाना है। सब ड्रामा है। लोग कहते हैं समाज बदल रहा है। लोग पढ़े लिखे हैं। विकास और देश की सोचते हैं। ऐसा कछू ना है बिहार में। अगर अइसा होता तो यहां जाति-पाति पर वोट पड़ता। लोग नेतवन के झूठे कोसते हैं। उ सब देखे है कि यहां ओही के जलवा है जे जाति के नाम पर सबसे ज्यादा बोका बनावे है। नतीजा हर पार्टी वाला ओही पर ध्यान देवे है। ले दे के कछू बचता है तो एक दूसरे पर आरोप मढ़ता है। पार्टी वाला उपर से दावा करे है हम अइसा करेंगे। ओइसा करेंगे।
लेकिन, एक उम्मीदवार नहीं मिले है जौन बतावे हम अपना क्षेत्र बदे का करेंगे। काहे की उ सब जानता है। यहां विकास की बात करता कौन है। आप कछू कहिए उ जाति पर वोट करेगा। हम तो कहे हैं आज के दौर से पहिले वाला जमाना बढिय़ा था। अच्छे लोग चुनाव लड़े रहे। अब त सब के सब जाली हैन। छोटका के कौन कहे बड़का पाटी वाला भी नाप जोख के टिकट देता है। यहां पटना से लेकर बनारस तक नजर उठा के देख लीजिए। क्षेत्र के साथ उम्मीदवार के जाति बदलकर चुनाव लड़ावे हैं सब। उ सब भी जाने हैं। यहां सारे मुद्दे एक तरफ जाति-पाति सबसे आगे। उनकी बातें अभी जारी थी। लेकिन मैं वहां से वापस अपने ठिकाने की तरफ लौट आया। मैं सोच रहा था, पत्रकारिता धर्म के अनुरूप उसकी वकालत तो नहीं की जा सकती। लेकिन, उन बातों को गलत भी नहीं ठहराया जा सकता। (माउथ मीडिया -बक्सर खबर का साप्ताहिक कालम है। जो शुक्रवार को प्रकाशित होता है। इस संबंध में आप अपनी शिकायत और सुझाव से हमें अवगत करा सकते हैं। )