‌‌नहीं भूलती बचपन की होली

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-वक्त की दरकार, फिजा में घोल दें प्यार,
बक्सर खबर। आप होली कैसे मनाते हैं, बचपन में कैसे मनाते थे ? एक साथ दो सवाल हमने पुलिस कप्तान यूएन वर्मा से पूछे। पहले सवाल का जवाब उन्होंने बहुत ही सलीके के साथ दिया। हम सभी का आदर करें, बड़ों से आशीर्वाद लें, छोटो में प्यार बांटे। सभी जिला वासियों को होली की शुभकामनाएं। अपनी पुलिस टीम को ढ़ेर सारी शुभकमनाएं। हमने उन्हें रोका, बचपन की होली ? वे हंस पड़े, क्या बताएं, वही तो दिन थे।

एक दिन पहले से होली शुरू। होली वाले दिन तो फिर कहिए नहीं। पूरे गांव के बच्चे एक साथ, होली है भाई होली है, बुरा न मानो होली और जो भी दिख जाए बस छपाक। दोपहर बाद गांव में एक जगह चौपाल जैसा खुला मैदान था। सभी वहां एकत्र हो जाते। बड़ों का पैर छूते और साथियों को गुलाल का टीका लगाते। पूरा गांव एक साथ, कोई भेदभाव नहीं। ( एसपी यूएन वर्मा बिहार के ही रहने वाले हैं)।
बचपन की होली के क्या कहने : एसडीएम
बक्सर खबर। जो सवाल कप्तान से वहीं सवाल एसडीएम कृष्ण कुमार उपाध्याय से। उनका पहला शब्द था। होली की शुभकामनाएं, आपको भी और जिले के सभी भाई बहनों को। हमारा सवाल सुन वे बोले। सुबह दोस्तों के साथ पूरे गांव में धमा चौकड़ी। दोपहर बाद नहा धोकर पिता जी के साथ पहले मंदिर फिर बड़ों का आशीर्वाद लेते। हमारे गांव में यह परंपरा आज भी विद्यमान है। सभी लोग एक दूसरे के यहां जाते हैं। बड़ों के पैर पर छू कर अभिवादन और अन्य को तिलक लगा शुभकामनाएं देते हैं। फिर शाम में सभी लोग एक साथ बैठकर पारंपरिक होली गीत गाते हैं। ( सदर एडीओ उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। जहां की संस्कृति बिहार से पूरी तरह मेल खाती है)
जगह-जगह लगती थी बैठकी : डीएसपी डुमरांव
बक्सर खबर। डुमरांव डीएसपी कृष्ण कुमार सिंह बताते हैं। हमारा गांव काफी बड़ा है। दो-तीन ग्रुप में लोग बंट जाते थे। रंग, अबीर, गुलाल का पहले बहुत प्रचलन नहीं था। लेकिन, सभी लोग एक साथ मिलकर गाते थे। तरह-तरह के गीत। ढ़ोल, मजिरा और उसपर नौजवानों का अडभंगी डांस। लोग खुब जोगिरा बोलते। शाम होने से पहले सभी लोग देवी मंदिर में जमा हो जाते। एक साथ गायन होता। पूरी फिजा रंगीन, वह होली आजीवन याद रहेगी। (केके सिंह भी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं)

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