-खंडित मूर्तियों और प्राप्त अवशेषों की पुरातत्व विभाग ने नहीं की जांच
बक्सर खबर। राजपुर प्रखंड के देवढिय़ा गांव स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर बहुत प्राचीन है। लेकिन, यह कब का है। इसकी जांच अभी तक पुरातत्व विभाग ने नहीं की। न ही यहां के वृद्धजन ही इसके बारे में कुछ विशेष बता पाते हैं। सबका एक ही जवाब है। यह मंदिर बहुत ही पुराना है। लगभग चार एकड़ क्षेत्र में फैले इस मंदिर के एक भाग में विशाल सरोवर हैं। रोड के दूसरे भाग में प्राचीन सूर्य मंदिर है। सरोवर और मंदिर की खूबसूरती आज भी देखते बनती है।
इसी सरोवर के किनारे साल में दो बार छठ पूजा होती है। इसदिन सूर्य उपासना करने के लिए बक्सर जिला के अलावा कैमूर, रोहतास के साथ पड़ोसी राज्य उतर पद्रेश के गाजीपुर ,बलिया ,गोरखपुर जिले के श्रद्धालु भक्त आते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां भगवान भास्कर के दरबार से कोई खाली नहीं जाता। महिमा ही है कि अपनी मन्नते पूरी करने के लिए हम लोग आते हैं। अपने गौरवशाली अतीत के रूप में पहचान दिलाने वाला यह मंदिर आज भी बचे हुए अवशेष के रूप में अवस्थित है।
देवढिय़ां सूर्य मंदिर सरोवर में पवित्र सप्तधारा है समाहित
बक्सर खबर। गांव के निवासी पंडित शिव नारायण तिवारी के नेतृत्व में तालाब की सफाई विगत दस बारह साल पहले की गई थी। जिसमें से अति प्राचीन काल के कईं पतली ईंटे प्राप्त हुई थी। इसके अलावा इस सरोवर के बीच सात कुआं भी है। लोगों का मानना है कि सात नदियों का पवित्र जल स्रोत का प्रतीक है। सफाई करने के दरमियान ग्रामीणों ने इसे देख अचंभित हो गए थे। बुजुर्गों का मानना है सूर्य मंदिर की प्राचीनता मंदिर में मौजूद अवशेषों से पता लगाया जा सकता है। मंदिर की चौखट पत्थर का है। जिस पर किसी लिपि में कुछ लिखा हुआ है जो आज तक कोई पढ़ नहीं पाया।
प्रशासनिक उदासीनता के कारण नहीं बन पाया पर्यटन स्थल
बक्सर खबर। प्रशासनिक उदासिनता के कारण इसकी साफ-सफाई मूल रूप में नहीं की गई। जबकि अभी भी इस सरोवर की गहराई लगभग 10 फिट से अधिक है। इस सरोवर की सुरक्षा के लिए इस पंचायत के पूर्व मुखिया रामहरीश तिवारी द्वारा चाहरदिवारी का काम कराया गया था। लेकिन इसके बाद से मंदिर के विकास के लिए कोई कार्य नहीं किया गया है। इसके ऐतिहासिक पहलुओ पर प्रकाश डालते हुए गांव के बुजुर्ग पंडित शिव नारायण तिवारी ने बताया कि अभी भी इसकी ख्याति दूर-दूर तक हैं। जहां लोग छठ के पावन पर्व के मौके पर हजारों की संख्या में इक्ठा होते हैं।
जबकि संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य सिद्धनाथ मिश्र ने इसके ऐतिहासिक पहलुओं के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि किवंदतियों में सुना जाता है कि राजा हर्षवद्र्धन के द्वारा यह मंदिर स्थापित कराया गया था जो तत्कालीन समय में स्थापत्य कला में अद्वितीय था। समय के परिवर्तनचक्र में जब मुगल शासन के अधिन भारत था। उस समय भारत का शासक औरंगजेब की सेना कर्मनाशा नदी को पार कर जब रामगढ़ के रास्ते चौरसिया से होकर गुजर रही थी तो यहां भी पहुंचकर उसकी सेना ने इसे ध्वस्त कर दिया तथा मूर्तियों को बगल के कुण्ड में डाल दिया गया। जिस सरोवर को कुछ वर्ष पहले 2003-2004 में तत्कालीन मुखिया रामहरीश तिवारी द्वारा जीर्णोद्धार कार्य के दौरान ग्रामीणों के सहयोग से सरोवर की सफाई के दौरान इसमें से कुछ मूर्तियां प्राप्त हुई थी। जिसे ग्रामीणों ने मंदिर में रखा था। लेकिन कुछ दिनों बाद रहस्यमय तरीके से ये मूर्तियां गायब हो गई। आज भी इस मंदिर के मुख्य दरवाजे पर ग्रेनाइट की पत्थर लगी हुयी है। जिस पत्थर को कुछ दिनों पूर्व मंदिर का प्लास्टर करने के दौरान उसे ढक दिया गया है। मंदिर परिसर में बलुआ पत्थर से निर्मित खण्डित मुर्तिया मौजूद है। इसकी ख्याति को लेकर कई बार पुरातत्व विभाग की टीम आयी लेकिन सिर्फ जांच का हवाला देकर चली गई। इस बारे में मंदिर के पुजारी कन्हैया तिवारी ने बताया कि अगर प्रशासन ध्यान दे तो निश्चित तौर पर इसे ग्रामीण परिवेश में एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।
डीएम एसपी का भी हुआ था दौरा
बक्सर खबर। वर्ष 2019 में इस सूर्य मंदिर को देखने के लिए जिलाधिकारी रघवेंद्र सिंह और पुलिस कप्तान उपेंद्र वर्मा एसडीओ कृष्णकांत उपाध्याय ने निरीक्षण कर इसकी पूरी रिपोर्ट प्रखंड के वरीय अधिकारियों को सौंपने के लिए कहा था। इस आलोक में कुछ रिपोर्ट तो भेजा गया लेकिन अभी भी अंचलाधिकारी के द्वारा कोई स्पष्ट रिपोर्ट नहीं भेजा गया।
सूर्य मंदिर में रखी गई पुरानी मूर्तियां