– राजपरिवार के पारंपरिक शस्त्र पूजन में उमड़ा शहर
बक्सर खबर। दशहरा का त्योहार सिर्फ देवी की अराधना व बुराई अपर अच्छाई की जीत तक ही सीमित नहीं है। विजयदशमी के दिन ही भारत वर्ष में शस्त्र पूजा का विधान भी है। वहीं दूसरी तरफ राज परिवार इस तिथि को तौजी पूजा का आयोजन करते हैं। अपने जिले के डुमरांव में सदियों से ऐसा होता है। यहां डुमरांव राज परिवार के सदस्य बिहारी जी मंदिर से इसकी शुरूआत करते हैं। बीते दिन शुक्रवार को वर्तमान डुमरांव महाराज चन्द्र विजय सिंह ने इस परंपरा का निर्वाह किया।
यह पूरा कार्यक्रम राजगढ़ परिसर में संपन्न हुआ। जिसे देखने के लिए शहर के लोग एक साथ जमा होते हैं। राजपरिवार का यह वार्षिक उत्सव बेहद महत्वपूर्ण आयोजन है। जो पुराने राजगढ़ किले में संपन्न होता है। राजशाही खत्म होने के बावजूद पूरे रियासत में बेहद सम्मानित राजपरिवार के सदस्यों से आशीर्वाद लेने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए भी शहर के लोग बड़ी संख्या में जुटे। महाराज ने पारंपरिक विधि से पूजा पाठ कर दान दक्षिणा की रस्म भी अदा की। महाराज चंद्र विजय सिंह के साथ युवराज सुमेर विजय सिंह, समृद्ध विजय सिंह, शिवांग विजय सिंह भी इस मौके पर मौजूद रहे।
सदियों से चली आ रही परंपरा
बक्सर खबर। देश के सबसे पुराने राजघराने में एक डुमरांव राज परिवार में तौजी पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। महाराज चंद्र विजय सिंह ने बताया कि विजयादशमी के दिन महाराजा अपने राज दरबार में उपस्थित होते थे। इस दौरान राजगढ़ परिसर में अवस्थित भगवान बांके बिहारी की विधिवत पूजा अर्चना के साथ ही अस्त्र-शस्त्रों की पूजा अर्चना की जाती थी। राज परिवार के लोग कहीं पर भी रहते थे तो इस दिन यहां जरूर उपस्थित होते थे। आज भी राज परिवार के लोग इस नियम का पालन करते हैं। इस दौरान निलकंड व मछली का दर्शन किया जाता है।
आम जन की नजर में तौजी पूजा
बक्सर खबर। हाल के दशक में इस पूजा के साक्षी रहे लोग बताते हैं। पहले डुमरांव महाराज स्व कमल सिंह इस परंपरा का निर्वाह करते थे। उनके बाद चन्द्र विजय सिंह इसे मना रहे हैं। राज के परिवार के सदस्य राजस्थानी पगड़ी, अचकन और पारंपरिक राजसी वेश-भूषा में काफिला लेकर निकलते हैं। इसे देखने के लिए पूरा नगर उमड़ पड़ता था। बहुत पहले तौजी का आयोजन महाराज घराना के द्वारा अनुमंडल मुख्यालय से पन्द्रह किलोमीटर दूर मठिला गांव स्थित अपने गढ़ पर किया जाता था। बाद में इसका आयोजन स्थल राजगढ़ कर जाने लगा।