– हनुमत धाम मंदिर प्रांगण में गुरु और शिष्य की महिमा पर हुई कथा
बक्सर खबर। सदर प्रखंड में स्थित श्री हनुमत धाम मंदिर प्रांगण में गुरु पूर्णिमा महोत्सव मनाया गया। शिष्य मंदिर प्रांगण में प्रवेश करके गुरु की पूजन अर्चना किए। साकेतवासी परम पूज्य श्रीमन्नारायण नेहनिधि नारायण दास जी भक्तमाली उपाख्य श्री मामा जी महाराज के प्रथम शिष्य श्री रामचरित्र दास जी महाराज उपाख्य श्री महात्मा जी ने कथा के दौरान कहा कि गुरु और शिष्य की महिमा बहुत ही निराली एवं सुखदायक होती है। पूरे मन से अगर गुरु की सेवा की जाए तो भगवान की सेवा अपने आप हो जाती है। महाराज श्री ने कहा कि गुरु का पूजन केवल एक गुरु पूर्णिमा के दिन करने से नहीं बल्कि गुरु के उपदेशों को आत्मसात करने मात्र से ही गुरु पूजन का फल प्राप्त हो जाता है। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान, तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।
अर्थात दो अक्षरों से मिलकर बने ‘गुरु’ शब्द का अर्थ प्रथम अक्षर ‘गु का अर्थ- ‘अंधकार’ होता है जबकि दूसरे अक्षर ‘रु’ का अर्थ- ‘उसको हटाने वाला’ होता है। संत तुलसीदास ने कहा है कि ‘गुरु विन भवनिधि तरई न कोई। जो बिरंचि संकर सम होई।।” अर्थात- गुरु की कृपा प्राप्ति के बगैर जीव संसार सागर से मुक्त नहीं हो सकता चाहे वह ब्रह्मा और शंकर के समान ही क्यों न हो! गुरु का दर्जा सम्पूर्ण सृष्टि में भगवान से भी अधिक माना गया है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए संत कबीरदास जी ने कहा है कि “गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काको लागू पाय। बलिहारी वा गुरु की, जो गोविन्द दियो बताए।।” गुरू और पारस मणि के अन्तर को सभी ज्ञानी पुरूष ही जानते हैं। पारस मणि के रहस्य से पूरा जगत परिचित है। जिसके स्पर्श मात्र से लोहा सोने का बन जाता है। ठीक उसी प्रकार गुरू भी इतने महान होते हैं कि अपने गुण ज्ञान में ढालकर शिष्य को अपने जैसा ही महान बना देते हैं। मौके पर रविलाल, नमोनारायण, अशोक, नंदबिहारी, लालजी, नीतीश, बिनीता दीदी, त्यागी जी, रघुनंदन, श्यामजी, राजऋषि, राजेश,पिंटू, सरोज, अनिमेष, जगत, हरिजी, गोविंद समेत अन्य भक्त मौजूद रहे।