-केस के आईवो व थानाध्यक्ष से मांगा गया जवाब
बक्सर खबर। दफा 420 के आरोपी को सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत नहीं दी। लेकिन, उसे शनिवार को व्यवहार न्यायालय में सीजेएम ने जमानत दे दी। यह खेल हुआ केस डायरी की आड में। ऐसा पहले भी होता रहा है। लेकिन, शनिवार को मुकदमा संख्या 44/22 के आरोपी को जमानत इसलिए दे दी गई क्योंकि केस डायरी जज के टेबल तक नहीं पहुंची। आरोपी संतोष यादव उर्फ संतोष सिंह को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) का लाभ देते हुए जमानत मंजूर कर दी गई। क्योंकि इस दफा में 60 दिनों के अंदर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का नियम है।
समय से डायरी नहीं देने के कारण न्यायाधीश ने राजपुर के थानाध्यक्ष व केस के अनुसंधान कर्ता संजय पासवान से इसका जवाब मांगा है। यह मामला राजपुर थाना से संबंधित है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संतोष जो सिकरौल थाना के मथौली बसांव के रहने वाले हैं। उन्होंने एक व्यक्ति से कागजी करार पर ट्रक लिया था। लेकिन, शर्तो को पूरा नहीं किया और उसे बेच दिया। वाहन मालिक को तय रुपये भी नहीं लौटाए। अंततः उस मामले में केस हुआ।
आरोपी ने जमानत के लिए व्यवहार न्यायालय, से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक दौड़ लगाई। लेकिन, धोखाधड़ी करने वालों को जमानत नहीं मिली। अंतत: उसने न्यायालय के समक्ष सरेंडर किया और डायरी के खेल में उसे जमानत मिल गई। हालांकि इस पूरे मामले में दोषी कौन है। सच जानने के लिए राजपुर के थानाध्यक्ष से सवाल किया गया। उनका कहना था, डायरी कोर्ट भेज दी गई थी। अब यहां सवाल यह उठता है कि डायरी कब न्यायालय गई, उसे किसने जज के टेबल तक नहीं जाने दिया। अगर वह अंतिम तिथि को कोर्ट भेजी गई तो इसके पीछे किसका हाथ है? लेकिन, सब सवाल भटकते न्यायतंत्र की भेंट चढ़ रहे हैं। और इसका लाभ चतुर लोग उठा रहे हैं।