– दो वर्ष के कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को नहीं खानी है दवा
बक्सर खबर। जिले में आज बुधवार से फाइलेरिया उन्मूलन का अभियान प्रारंभ किया गया है। समाहरणालय के साथ-साथ जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर इसकी शुरुआत की गई। सबसे पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स व चिकित्सकों ने दवा खाकर अभियान की शुरुआत की। जिला कार्यालय में स्वयं उप विकास आयुक्त महेन्द्र पाल, सिविल सर्जन जितेन्द्र नाथ व एसडीएम आदि ने भी दवा खाकर लोगों को इसके लिए जागरूक किया। उप विकास आयुक्त बक्सर डॉ महेंद्र पाल ने सभागार में उपस्थित सदस्यों को बताया कि फाइलेरिया (हाथीपांव) एक लाइलाज बीमारी है। जो मच्छर के काटने से होता है। इसके साथ ही कई ऐसी बीमारियां है जैसे डेंगू, मलेरिया, जापानी इन्सेफेलाइटिस आदि भी मच्छर के काटने से ही फैलते हैं।
इसलिए इन बीमारियों से बचने के लिए दवाओं के साथ साथ अनिवार्य रूप से मच्छरदानी का प्रयोग करें। ताकि, मच्छरों से बचाव हो सके। साथ ही, घर के आसपास जलजमाव न होने दें। सिविल सर्जन ने बताया कि माइक्रो फाइलेरिया का परजीवी संक्रमित व्यक्ति के पैर, हाथ, अंडकोष व स्तन को इतनी बुरी तरह से प्रभावित कर देता है। जिसके बाद संक्रमित मरीज पूरी तरह से दिव्यांग हो जाता है। इसके लक्षण संक्रमण के 8 से 12 सालों बाद नजर आते हैं। ऐसी स्थिति में मानव शरीर के अंगों हाथ, पैर, स्तन व अंडकोष में सूजन बढ़ने लगती है।
उन्होंने बताया कि एमडीए अभियान के तहत जिले के सभी प्रखंडों में फ्रंटलाइन वर्कर्स द्वारा घर-घर जाकर दवा खिलाई जाती है। यह दवा साल में एक बार ही खानी होती है। यदि पांच साल तक लगातार प्रतिवर्ष एक बार दवा खाने का क्रम जारी रखा जाए तो आजीवन फाइलेरिया से मुक्ति मिल सकती है। जिन लाभुकों में फाइलेरिया का परजीवी नहीं होता, उन्हें किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है। लेकिन, जिनके शरीर में माइक्रो फाइलेरिया का परजीवी मौजूद होता है तो उन्हें दवा खाने के बाद उनके शरीर में परजीवी मरते हैं। इस वजह से उन्हें सिरदर्द, बुखार, उल्टी, बदन में चकत्ते और खुजली जैसी प्रतिक्रिया देखने को मिलती हैं। जो बाद में स्वत: ही ठीक हो जाते हैं। दवा दो वर्ष से कम तथा गर्भवती महिला को नहीं खाना चाहिए। अगर किसी को गंभीर बीमारी है। वह भी इससे अलग रह सकता है।