बक्सर खबर। आज हम आपका परिचय उन जीवट लोगों से करा रहे हैं। जिन्होंने अपने दम पर स्वरोजगार खड़ा किया। साथ ही पूरे जिले में अपनी अलग पहचान भी बनाई है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है। जिले ही नहीं पूरे बिहार में भोजपुर ही एक ऐसी जगह है। जहां सालो भर भुट्टा मिलता है। ताजा और भुना हुआ। चाहे बरसात का मौसम हो अथवा तपती दोपहरी। पुराना भोजपुर, नया भोजपुर और डुमरांव स्टेशन पर भुट्टा (मकई)बेचने वाले मिल जाते हैं। इनसे बात करने पर पता चलता है। यह इनकी मजबूरी है। जो यहां बैठकर इसे बेचते हैं। लेकिन, अपनी मजबूरी को इन लोगों ने अपनी ताकत बना ली है।
यह इलाका गंगा का तटिय क्षेत्र है। यहां सिंचाई के साधन नहीं हैं। इस वजह से इस इलाके में मकई की खेती होती है। बाढ़ आने पर छोटी फसल डूब जाती है। लेकिन, मकई का आकार बड़ा होता है। सो फसल मिल जाती है। इस वजह से इस इलाके के वैसे लोग जो छोटी पूंजी वाले हैं। वे मकई पैदा करते है और उसे बाजार में बेचते हैं। सड़क किनारे बैठ भुट्टा बेच रहे हीरा लाल चौधरी ने बताया कि पिछले पच्चीस वर्ष से यह कारोबार करता हूं। पहले बहुत से लोग चौक पर बैठकर इसे बेचते थे। कुछ लोग अब स्टेशन चले गए हैं। मैं अपनी जवानी में दिल्ली, मुंबई, गुजरात हर जगह कमाने के लिए दौड़ा। पर गांव आकर पता चला उतना तो में यहीं कमा लुंगा। वहां रहता था तो परिवार और घर में उससे ज्यादा का नुकसान हो जाता था। इस काम में मेरा भतिजा भी शामिल हो गया है। अब वह भी सड़क किनारे भुट्टा बेचता है। अब बक्सर-पटना सड़क बन रही है। बक्सर की पुल भी बन रही है। वाहनों का आवागमन बढ़ेगा तो हमारा धंधा भी बढ़ेगा। हीरा लाल ने पूछने पर बताया वैसे तो इसकी पैदावार खरीफ के मौसम में होती है। लेकिन, लोगों की पसंद को देखते हुए आस-पास के कई गांव के किसान जिनके पास कम जमीन है। वे सालो भर इसकी पैदावार कर लेते हैं।
बाजार घर में है तो उनके माल की खपत भी हो जाती है। मजे में हमारी जीवन की गाड़ी चल जाती है। हालाकि महंगाई के इस दौर में पांच से दस रुपये में भुट्टा बेचने वाले कामगार कम खरीद से मायूस भी होते हैं। क्योंकि लोग अब चिप्स और टकाटक जैसी चिंजे खाने और खिलाने लगे हैं। जिसका प्रभाव उनके रोजगार पर पड़ रहा है। आज के दौर में पारंपरिक खाद्य पदार्थों से लोगों का दूर होना इनकी चिंता का सब भी है। इस लिए बक्सर खबर आपसे आग्रह करता है। अपने बीच के लोगों की मदद करिए। अगर आप चौक पर खड़े हो दस रुपये चाय पान पर खर्च करते हैं। तो उसकी जगह भुट्टा खाकर स्वयं भी आनंद लिजिए और भरी दोपहरी में पसीना बनाने वालों की मदद भी करें। (साप्ताहिक कालम यह भी जाने के प्रायोजक हैं, आरके ज्वेलर्स, पुराना चौक, बक्सर। यह कालम प्रत्येक मंगलवार को प्रकाशित होता है।)