– पांच दिनों तक चलता है मेला, अंतिम दिन पूरे जिले में घर-घर बनता है लिट्टी-चोखा
बक्सर खबर। क्या आप जानते हैं भारत वर्ष का एक ऐसा जिला है। जहां पांच दिनों तक दर्शन-पूजन और प्रसाद पाने का मेला चलता है। इस मेले के अंतिम दिन सिर्फ मेला क्षेत्र नहीं बक्सर जिले में लिट्टी-चोखा लोग बनाते हैं और खाते हैं। अगर हम आंकड़ों की बात करें तो आप कह सकते हैं बिहार का एक ऐसा जिला है। जहां एक साथ बीस लाख से अधिक लोग एक ही भोजन करते हैं। वह है लिट्टी-चोखा, जिसे लोग प्रसाद समझ ग्रहण करते हैं। ऐसा होता है अपने बक्सर में। जहां त्रेता युग में भगवान राम ने यह प्रसाद ग्रहण किया था। अगर आप बक्सर के रहने वाले हैं तो आपको इस महत्व के बारे में पूर्व से जानकारी होगी। लेकिन, आप यहां एक और बात गर्व के साथ कह सकते हैं। आज पूरे देश में यह मशहूर है कि बिहार का व्यंजन लिट्टी-चोखा है। लेकिन, उसको पहचान देने वाला बक्सर जिला ही है। जहां आज भी उसका मेला लगता है।
जाने कब और कहां-कहां लगता है मेला, क्या है इसकी पूरी कहानी
बक्सर खबर। बक्सर देश का एक ऐसा जिला है। जहां वर्ष में एक दिन ऐसा आता है। जब सभी लोग एक ही भोजन करते हैं। जिसे लिट्टी-चोखा मेला के नाम से जाना जाता है। बुजुर्ग बताते हैं, इसको लेकर एक कहावत बिहार में प्रचलित है। माई बिसरी, बाबु बिसरी, पंचकोसवा के लिट्टी-चोखा नाही बिसरी। ऐसा होता है मार्गशीर्ष माह अर्थात अगहन की नवमी तिथि को। उसी दिन इस जिले के सभी घरों में एक ही भोजन बनता है। लोग इसे चाव से खाते हैं। वैसे यह मेला पांच दिनों का होता है। जो अगहन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि (इस वर्ष 2 दिसंबर ) को अहिल्या धाम अहिरौली से प्रारंभ होता है। लोग पांच ऋषियों के आश्रम का भ्रमण करते हैं। जहां मान्यता के अनुरुप अलग-अलग प्रसाद ग्रहण किया जाता है। अंतिम दिन विश्वामित्र मुनी के आश्रम अर्थात बक्सर में लिट्टी-चोखा खाते हैं। बक्सर जिले की अगर बात करें तो यह 1624 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यहां की आबादी लगभग 20 लाख है। और इस मेले में शामिल होने आरा, सासाराम, कैमूर, औरंगाबाद, बलिया आदि जिलों से लोग यहां आते हैं। उस दिन किसी धर्म का भेद नहीं रहता। मेले के समापन की दिन यहां की आबादी बीस लाख को पार कर जाती है। लोग उपले जलाकर भोजन तैयार करते हैं। इस वजह से पूरा शहर धुएं से पट जाता है।
क्या है धार्मिक मान्यता
बक्सर खबर। ऐसी मान्यता है कि यज्ञ सफल करने के लिए भगवान राम व लक्षमण महर्षि विश्वामित्र के साथ अगहन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को बक्सर पहुंचे थे। वे सबसे पहले गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचे। जहां अहिल्या का उद्धार हुआ। यहां मेले का पहला पड़ाव होता है। इस गांव का नाम अहिरौली है। जहां अहिल्या का मंदिर मौजूद है। दूसरा पड़ाव होता है नारद मुनि के आश्रम पर। जिस स्थान का नाम आज भी नदांव है। वहां नर्वदेश्वर महादेव का मंदिर है। जहां लोग खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। तीसरा पड़ाव भभुअर गांव होता है। जहां कभी भार्गव ऋषि का आश्रम हुआ करता था। यहां दही-चूड़ा का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। चौथा पड़ा होता है उद्दालक मुनि के आश्रम में। जिस गांव का नाम नुआंव है। यहां भी प्राचीन शिव मंदिर है। जहां लोग सत्तू और मूली का प्रसाद ग्रहण करते हैं। पांचवां और अंतिम पड़ाव होता है बक्सर शहर खासकर चरित्रवन का क्षेत्र। जहां लोग लिट्टी-चोखा बनाते और खाते हैं।