बत-रस: प्रतिमा हो तो उस्ताद की शहनाई से बड़ी

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बुरबक
आज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की जयंती है। इस बात से वाकिफ हाथ छाप नेता जी के भीतर सोया उस्ताद का भूत अचानक जगा और उन्होंने आनन-फानन में मीडिया वालों को बुला लिया। दम फूल रहा था। उस्ताद के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा लहर ले रहा था। चूंकि नेता जी बड़े व्यवहारिक हैं, सो उनका बुलावा मिलते ही मीडिया के भाई लोग उनके निवास स्थल पर पहुंच गए।

बाल-दाढ़ी में कंघा लगाने के बाद आंखों पर चश्मा चढ़ाया और बैठ गए कुर्सी पर। सामने मीडिया वालों ने माइक लगा दिया। अंदर छिपा बड़ा वाला नेता जग गया। मुंह खुला और इतना खुला कि नेता जी कहने लगे कि उस्ताद की प्रतिमा आज तक नहीं लगी। हम मांग करता हूं कि जेतना जल्दी से जल्दी हो सके उनका प्रतिमा लगाया जाए। अब मुसलमानों की खैरख्वाह बनने वाली पार्टी का पट्टा लटकाने वाले नेता जी को कौन बताए कि इस्लाम में बुतपरस्ती मना है। उस्ताद की प्रतिमा नहीं लगाई जा सकती।

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दिलचस्प यह कि सामने अपने कैमरों के साथ क्रियारत मीडिया के भाइयों ने इस बात पर पूछा कि नेता जी प्रतिमा लगेगी तो कितनी बड़ी होगी? इस पर नेता जी ने कहा कि अब उस्ताद की है तो शहनाई से तो बड़ी ही होनी चाहिए। मीडिया वालों ने कहा कि हम लोग आपकी मांग ऊपर तक पहुंचा देंगे। सेवा-सत्कार पाने के बाद मीडिया के लोग जब वहां से चले गए तो नेता जी के एक शुभचिंतक ने कहा कि उस्ताद मुसलमान थे और इस्लाम में प्रतिमा पूजन वर्जित है। आपने तो गलत कह दिया। इस पर नेता जी ने तपाक से कहा कि अरे चलो, ये बात तुमको न मालूम है। मीडिया वाले तो नहीं जानते थे न। और रही बात प्रतिमा की, तो मैं कब चाहूंगा कि लग जाए। खुद को चालाक समझ रहे बेवकूफ आदमी यदि प्रतिमा लगनी भी होती और लग जाती तो, मैं क्या करता? अगले साल 21 मार्च को झाल बजाता?

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