-अपने गांव में खोला स्कूल, दक्षिण अफ्रीका में बसा है परिवार
बक्सर खबर। अपने जिले में भी एक से एक होनहार लोग हैं। समय-समय पर जब उनकी कहानी सामने आती है। तो वह लोगों को हैरान करती है। आज एक ऐसी ही परिवार की जानकारी आपके समक्ष है। यह कहानी है धनसोई थाना के बन्नी गांव निवासी शिवचंद की। जो कभी यहां से मजदूर बनकर दक्षिण अफ्रीका गए थे। उनका नाम शिवचन्द्र कुशवाहा था। परिवार की हालत ठीक नहीं थी। अंग्रेजी शासन का दौर था। उन्हें यहां से खेती करने के लिए वहां भेजा गया। तब उनकी उम्र 22 वर्ष थी। वक्त गुजरता गया। खेती करने के साथ वहां टैक्सी चलाना शुरू किया। वहीं शादी हो गई।
बच्चे हुए और पर्याप्त संसाधन नहीं होने के कारण अपने देश वापस नहीं लौट पाए। लेकिन अपने देश और गांव की बात उन्होंने बच्चों को बताई। पिता का दर्द सुन बच्चों ने खूब परिश्रम किया और डाक्टर बने। लेकिन, वे भी भारत नहीं लौटे। आज उनकी तीसरी पीढ़ी अपने गांव लौटी है। यहां से अकेले वहां गए शिवचन्द्र कुशवाहा के परिवार में अब पचास से अधिक सदस्य हैं। 2008 में पहली बार शिवचंद के पौत्र डा. राज राम किशन यहां आए। गांव वालों को पूरी कहानी बतायी।
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अपने पिता और दादा की तस्वीर लोगों के सामने रखी। उनका अपना परिवार भी मिल गया। डा. ने कहा मैं अपने दादा के नाम से स्कूल बनाना चाहता हूं। कुछ दिन रुके, आपसी तालमेल से परिवार के वंशजों ने उन्हें विद्यालय के लिए जमीन मुहैया कराने का वादा किया। जो आज के वक्त में उनके नाम से थी। गांव वाले भी यह जानकर हैरान थे। डेढ़ सौ साल पहले कोई हमारे बीच से दक्षिण अफ्रीका गया था। विद्यालय बनकर तैयार हुआ और 2011 में इसका शुभारंभ हुआ।
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आज है परिवार में पचास से अधिक लोग
बक्सर खबर। शिवचंद राम के परिजन अब दक्षिण अफ्रीका के नेटाल प्रांत में रहते हैं। 2011 में विद्यालय शुरू हुआ। जिसका नाम रखा गया शिवचंद मेमोरियल स्कूल। 22 फरवरी 2014 को विद्यालय के स्थापना दिवस के मौके पर पहली बार चालीस लोगों का परिवार अपने गांव आया। उन्हें देखने के लिए पूरा गांव एकत्र हो गया। कैसे हैं दक्षिण अफ्रीका के लोग। तब गांव वालों को पता चला कि आज उनका परिवार इतना बड़ा हो गया है। इस परिवार में आधा दर्जन से अधिक डाक्टर एवं कुछ पुरुष सदस्य प्रशासनिक अधिकारी एवं राजनेता भी हैं। विद्यालय में ढ़ाई सौ बच्चे पढ़ते हैं। जो धनसोई थाना के बन्नी गांव में स्थित है। स्कूल में कुछ शुल्क लिया जाता है। जिससे शिक्षकों को वेतन दिया जा सके। विद्यालय में कम्प्यूटर, लाइब्रेरी और छोटा उपचार केन्द्र भी है। जहां आवश्यकता पडऩे बच्चों का प्राथमिकी उपचार किया जा सके।
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इस बार आए तो सौंप गए स्कूल बस
बक्सर खबर। डा. राज राम किशन और उनका परिवार चार वर्ष पहले अपने गांव आया था। गांव के लोगों ने उनको खबर की। इस वर्ष विद्यालय के वार्षिक समारोह में आप लोग आए। गांव वालों के बुलावे पर दक्षिण अफ्रीका से परिवार के पचास से अधिक सदस्य 22 फरवरी अर्थात चार दिन पहले (आज 26 को खबर जारी हो रही है) गांव पहुंचे। अब यहां के लिए विदेशी बन चुके अपने बीच के लोगों को देखने के लिए पूरा गांव ही नहीं आस-पास के लोग भी यहां जमा हुए। सबने मिलकर उनका सत्कार किया। वे हवाई जहाज से पहले वाराणसी आए। वहां से सड़क मार्ग द्वारा अपने गांव। आते समय उन्होंने वाराणसी में रुक कर एक स्कूल वान खरीदी। उसे भी जाते समय स्कूल को सौंप गए। जिससे दूसरे गांव से आने वाले बच्चों को उनके गांव तक पहुंचाया जा सके। मीडिया से बातचीत में उन लोगों ने कहा। हमारी इच्छा है विद्यालय ट्रस्ट के रुप में संचालित हो। यहां बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जा सके। नोट- यह आलेख अशोक सिंह निवासी बन्नी द्वारा भेजा गया है। जिसे बक्सर खबर ने अपने साप्ताहिक कालम यह भी जाने के तहत आपके समक्ष रख्खा है। सप्ताह में प्रत्येक मंगलवार को यह कालम प्रकाशित किया जाता है।