बक्सर खबर। अध्यात्म की नगरी बक्सर ने युग-युगांतर से बिहार का नाम रौशन किया है। इस बार भी कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर जिस तरह की भव्य देव दिवाली यहां मनी। यह पूरे बिहार में अद्वितीय रही। बक्सर के सभी गंगा घाट एवं गांव-गांव में दिवाली का नजारा रहा। प्रकाश की लौ विकास और अमन का संदेश देती है। अंधकार को मात देती दीपक की रौशनी यह बताती है हम अमन के पुजारी हैं। जो नजारा शुक्रवार को यहां के गंगा घाटों पर दिखा। उसकी प्रशंसा होनी जरुर होनी चाहिए।
वे सभी लोग साधुवाद के हकदार हैं। जिन्होंने अपनी परंपरा का निर्वहन किया और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए गंगा घाटों तक आए। बगैर किसी प्रशासनिक सहायता के युवाओं, समाजसेवियों एवं महिलाओं और बच्चों ने नजारा प्रस्तुत किया। उसका वर्णन कुछ शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह मनोरम छटा, लाखों की संख्या में जलते दीपक और जगह-जगह गंगा आरती। पूरे बिहार को संदेश देने वाली रही। ऐसा नहीं है यह पहली बार है। इससे पहले भी बक्सर के पंचकोश मेले ने बिहार को नई पहचान दी है। आज बिहार का व्यंजन लिटृटी-चोखा है। यह सभी जानते हैं। लेकिन, उसका मेला बक्सर में लगता है। यह बिहार के बाहर कम लोग ही जानते हैं। जानकार यह भी दावे करते हैं कि राज्य के इस व्यंजन को पहचान देने वाला भी बक्सर ही है। यह परंपरा भी यहीं से शुरू हुई थी। लेकिन, बक्सर को किसी भी सरकार ने पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित नहीं किया। जबकि इसकी यहां असीम संभावनाएं हैं।