– लेकिन, पंचकोशी परिक्रमा वर्ष में सिर्फ एक बार क्यूं
बक्सर खबर। सिद्धाश्रम का पंचकोशी परिक्रमा मेला जिसे लोग लिट्टी-चोखा मेला के नाम से जानते हैं। वर्ष में एक बार आयोजित होता है। यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। और वह लिट्टी-चोखा आज बिहार के व्यंजन के नाम से पूरे देश में जाना जाता है। बच्चों की पाठ्य पुस्तक में इसका जिक्र मिलता है। बिहार का व्यंजन लिट्टी-चोखा है। लेकिन, उसका मेला तो बक्सर में लगता है। यहां आप गर्व के साथ कह सकते हैं। बिहार को व्यंजन को पहचान सिद्धाश्रम ने दी है। ऐसा अनुमान है, इस तिथि को जिले में लगभग 20 से 25 लाख लोग लिट्टी-बनाते और खाते हैं।
22 लाख के लगभग इस जिले की आबादी है। और तीन-चार लोग पंचकोशी परिक्रमा की वजह से यहां आते हैं अथवा जहां रहते हैं वहीं भोजन बनाकर प्रभु के नाम पर प्रसाद समझ ग्रहण करते हैं। यह खबर हमने कई बार प्रकाशित की है। परिक्रमा स्थल के सभी पांचों ऋषियों के आश्रम के विवरण के साथ। यहां खबर के नीचे आपको उन पुरानी खबरों के लिंक भी मिलेंगे। लेकिन, इस बार का विषय इससे कहीं ज्यादा गंभीर है। यह मेला वर्ष में एक बार लगता है, लगे कोई बात नहीं। लेकिन, पंचकोशी परिक्रमा वर्ष में एक ही बार क्यूं। जिस तरह वृंदावन, चित्रकूट में रोज परिक्रमा होती है।
एकादशी के दिन अयोध्या में होती है। उसी तरह बक्सर में परिक्रमा क्यों नहीं। अगर ऐसा होगा तो बक्सर के आध्यात्मिक महत्व की चर्चा बढ़ेगी। साथ उन पांचों स्थलों का विकास भी होगा। यह परिक्रमा हमेशा चलनी चाहिए। जब यह सवार पूज्य संत जीयर स्वामी जी से की गई तो उन्होंने कहा। ऐसा होना ही चाहिए। मेला अपनी जगह है, प्रभु आए थे। उसके स्वागत में परंपरा चली आ रही है। लेकिन, यहां की परिक्रमा का विशेष लाभ है। ऐसे लोग जो बीमार हैं, बुजुर्ग हैं। उनके लिए विशेष सुविधा होनी चाहिए। अर्थात इन स्थानों तक जाने वाले मार्गों का विकास होना चाहिए। इसके लिए सरकार और स्थानीय लोगों को विशेष प्रयास करना चाहिए।
गर्व है : बक्सर के लिट्टी-चोखा ने दी बिहार को पहचान
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