आइए कुछ अच्छा पढ़ते हैं: क्या है नि: स्वार्थ प्रेम

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बक्सर खबर। एक बार की बात है। एक ग्वालन सुबह-सुबह सबको दूध दे रही थी। उसके पास आने वाले लोगों को वह नाप-नाप कर दूध दे रही थी। इसी बीच एक युवक उसके पास आया। बगैर माप-तौल के उसने उसका पूरा बर्तन भर दिया। यह व्यक्ति वहां से चला गया। कुछ दूरी पर एक साधु बैठ थे। वे माला फेर रहे थे। उनकी नजर उस पर गई। पास में बैठे दूसरे व्यक्ति से उन्होंने इसके बारे पूछा। उसने जवाब दिया ग्वालन उस व्यक्ति से प्रेम करती है। इसी लिए उसे बगैर नाप के दूध दे देती है।

यह बात साधु ने सूनी तो उनके दिल को छू गई। उन्हें एहसास हुआ प्यार में तो नाप-तौल, मोल भाव होता नहीं है। वह तो नि: स्वार्थ होता है। फिर मैं जिस ईश्वर से प्रेम करता हूं। वहां कैसा हिसाब-किताब। जहां ऐसा होता है वहां प्रेम कैसा। बाबा की आंखे भर आई और उन्होंने माला तोड़ी और फिर भजन करते चल पड़े। आप भी जिससे प्रेम करें, भाई से, बहन से, पत्नी से, साथी से तो बस नि: स्वार्थ करें। वहां हिसाब-किताब न करें।

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