बक्सर खबर । हर युवक अपने लिए बेहतर सपने देखता है। लेकिन, हालात उसे रास्ता बदलने पर मजबूर कर देते हैं। ऐसा ही हुआ पत्रकार वरूण कुमार के साथ। पिता कामेश्वर सिंह के तीन पुत्रों में सबसे बड़े थे। स्नातक की पढ़ाई करने वरुण पटना ए एन कालेज गए। इसी बीच पिता सदा के लिए साथ छोड़कर चले गए। होनहार वरुण को गहरा धक्का लगा। जिम्मेवारियों ने पैर में बेडिय़ां डाल दी। वे गांव लौट आए। फिर सोनवर्षा के होकर रह गए। सोनवर्षा बाजार अपने जिले के नावानगर प्रखंड का हिस्सा है, जो एनएच 31 पर बसा है। यहीं रहते हुए वर्ष 2011 में हिन्दुस्तान से जुड़े। चल पड़े खबरों के पीछे और अब हाल ये है कि घर वाले उनकी इस पत्रकारिता से परेशान हैं, क्योंकि उन्हें परिवार से ज्यादा खबरों की चिंता सताती है। प्रस्तुत है उनके शब्दों में उन्हीं का जीवन वृत्त-
पत्रकारिता जीवन
बक्सर : वरुण बताते हैं पत्रकारिता से जुडऩे का श्रेय त्रिलोकी मिश्रा को जाता है। उन्होंने ही मुझे अखबार से जोड़ा। कुछ समय तक मैं अखबार के लिए तस्वीर खींचता रहा। वर्ष 2011 में मुझे हिन्दुस्तान अखबार ने वहां का संवाददाता बनाया। खबरों की समझ हो चुकी थी। जुड़ाव बढ़ता गया। इस बीच मैंने पाया कि पत्रकारों का जीवन बहुत संघर्ष से भरा है। समझ का विस्तार हुआ। इस बीच 2017 में दैनिक भास्कर से संपर्क हुआ। पहले केसठ के लिए लिखता था, अब नावानगर की जिम्मेवारी मिली।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : वरुण का अतीत भोजपुर जिले के आयर गांव से जुड़ा हुआ है। लेकिन अब वे सोनवर्षा के होकर रह गए हैं। वर्ष 1976 में इनका जन्म हुआ। पिता स्व. कामेश्वर सिंह के नहीं होने के कारण परिवार की जिम्मेवारी उन पर है। तीन भाइयों में वे सबसे बड़े हैं। मां कुंता कुंवर का स्नेह उन्हें अभी भी प्राप्त हो रहा है। वर्ष 1999 में उनकी शादी हो गई। आज एक पुत्र और पुत्री के पिता हैं।