बक्सर खबर। माल सरकारी हो तो कुछ भी हो सकता है। उसे कूड़े के ढेर में फेका भी जा सकता है। भले ही जरुरत मंदों उसकी आपूर्ति नहीं होती हो। जी हां हम बात कर रहे हैं सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दी जाने वाली दवा की। आज शनिवार को डुमरांव अनुमंडलीय अस्पताल परिसर के पास दवा की लगभग आठ सौ छोटी बोतले फेंकी गई थी। मीडिया की नजर पड़ी तो पड़ताल शुरू हुई। दवा का नाम प्रोमाजाइन सिरफ था। जो बच्चों को दी जाने वाली दवा है। उसकी कीमत लगभग 70 रुपये है। अर्थात जो 800 फाइल दवा फेंकी गई है उसकी कीमत 56 हजार के लगभग है। पूछताछ हुई तो पता चला दवा इस माह के अंत में खराब होने वाली है।
अगर सरकारी दवा नष्ट हो रही है तो किसकी अनुमति से। इसबारे में अस्पताल प्रबंधन से पूछा गया तो पता चला नष्ट करने से पहले इसकी सूचना वरीय अधिकारियों को देनी होती है। उसके लिए डी कंटामेंशन टीम का गठन होता हैं। जिसमें दो चिकित्सक और एक फार्मासिस्ट होते हैं। वह टीम पूरे मामले का अवलोकन करती है। दवा कैसे बची, समय रहते उसे अन्य अस्पतालों में क्यों नहीं भेजा गया आदि। मीडिया द्वारा इस सिलसिले में सवाल जवाब होता देख वहां से फेंकी गई दवा हटा लिए जाने की सूचना भी मिल रही हैं। फिलहाल इस मामले में पूरा अस्पताल प्रबंधन और तैनात फार्मासिस्ट भी संदेह के घेरे में हैं।