बक्सर खबर। सीताराम विवाह महोत्सव नया बाजार में चल रहा है। वृंदावन से पधारे पुण्डरीक गोस्वामी जी कथा कह रहे हैं। वाल्मीकि रामायण के प्रसंग हो रहे हैं। प्रभु की लीलाओं और उनके स्वरुप का वर्णन सुनने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं। कथा के दौरान ऐसे-ऐसे प्रसंग सामने आ रहे हैं। जो श्रोताओं के ज्ञान को बढ़ाने वाले हैं। शनिवार को कथा के दौरान गोस्वामी जी ने कहा। महात्मा कौन है…? या महात्मा कहते किसको हैं। आज बहुत से लोग यह उपाधि लगाए मिल जाते हैं। लेकिन इस शब्द का मतलब क्या है। महात्मा कहलाने का हकदार कौन है। यह जानना बहुत जरुरी है।
उन्होंने विशद व्याख्या के साथ सरल शब्दों में इसका अर्थ स्पष्ट किया। जिसके वचन, कर्म और आचरण में समानता हो वही सच्चा महात्मा है। आप के सामने अगर कोई व्यक्ति क्रोधित अवस्था में खड़ा हो। तो आप उसे महात्मा कहेंगे। जी नहीं व्यक्ति के नाम के अनुरूप उसका आचरण होना अनिवार्य है। आज समाज में सबसे बड़ी विकृति यही आ गई है। भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों का वर्णन है। लेकिन सब में विकार आ गए हैं। यहां तक की अंतिम संस्कार भी दूषित हो गया है। मनुष्य समझ ही नहीं पा रहा। किसका क्या महत्व है। पहला संस्कार है गर्भाधान संस्कार। वह तो शायद किसी को पता नहीं। यह वह संस्कार है, जिसके परिणाम स्वरुप कश्यप ऋषि के यहां भगवान वामन का जन्म हुआ। हिरणकश्यप के घर प्रहलाद जैसे भक्त का जन्म हुआ। यहां तक की विवाह संस्कार भी अब जैसे-तैसे हो रहा है। आप यह जान लें विवाह संस्कार रात्रि वेला में उचित नहीं है। रात्रि में मंत्रों का उच्चारण भी उचित नहीं। मनुष्य को बहुत कुछ जानने की जरुरत है। यह तभी संभव है जब सतसंग होगा। इस तरह की बहुत ही बातें उन्होंने शनिवार की कथा में कहीं।