बक्सर खबर (माउथ मीडिया) । बतकुच्चन गुरू कभी-कभी ऐसी बात करते हैं कि उसको समझना मुश्किल हो जाता है। कुछ दिन पहले मिल गए राह चलते हुए। देखते ही जोर से बोले गुरू यहां आओ। मैं ने उन्हें राम सलाम किया और अदब से पास जाकर खड़ा हो गया। धीरे से मुस्काते हुए मेरी तरफ देखे और बोले। जानते हो दांत दिखावे बदे होत हैं। काट-छाट करते हैं, भौकाल बनाते हैं, लेकिन बगैर जीभ के कोई खा नहीं सकता। इ जौन जीभ है ओही से सब आजकल खा रहे हैं। जौन मिला के दात न है उस सब सुडूक-सुडूक के पीता है, घोट जाता है। कवनो के भनक भी नहीं लगने देता है। वे बोले जा रहे थे, मैं अपना माथा ठोक रहा था, कहां से बोल रहे हैं, क्या कहना चाहते हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
मैं उनका मुंह देख रहा था। मेरे मनोभाव को वे ताड़ गए। इसके पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा है। सो थोड़ी देर के लिए रूके। मेरी तरफ घुरते हुए बोले। गुरू हमरी बात तोहरे पल्ले नाही पड़ रही हौ। मैं क्या कहता, चुपचाप उनकी तरफ देख ना समझ की तरफ मुस्कुरा रहा था। फिर वे हंस के बोले अकौड़ा, नकौड़ा, पकौड़ा सब खा रहे हैं जीभीएन से। उनकी यह बात सुन मैं हंस पड़ा। लेकिन, मुझसे रहा नहीं गया। मैंने हिम्मत जुटा के पूछ लिया। गुरू इ जीभीएन और अकौड़ा, पकौड़ा का क्या मतलब है ? वे भी मेरी बात सुन हंसने लगे।
फिर बोले गुरु जीभीएन का काम यहां करोड़ा में चल रहा है। ओकर मतलब तुम खुदे समझ लो। हम तोहरा इतना बता दे रहे हैं अकौड़ा हुए अधिकारी, नकौड़ा हुए नेता और पकौड़ा हुए पत्रकार। कुछ मनई और भी हैन। जौन धक्का-धुक्की कर चानी काट रहे हैं। इतना कह वे अपनी राह चले गए। मैं उनकी बातों का अर्थ पूरी तरह समझ नहीं पा रहा हूं। यह गुत्थी आप लोग चाहे तो स्वयं भी सुलझा सकते हैं। ( नोट- माउथ मीडिया बक्सर खबर का साप्ताहिक व्यंग्य कालम है। जो प्रत्येक शुक्रवार को प्रकाशित होता है। आप अपने सुझाव हमें कमेंट के माध्यम से दे सकते हैं। )