बक्सर खबर। देश ही नहीं जिले में भी किसानों के नाम पर राजनीति शुरू हो गई है, जबकि बेबस किसानों की हालत जस की तस बनी हुई है। जिले के किसान इन दिनों कई तरफा मार झेल रहे हैं। पहले तो धान की फसल ठीक नहीं हुई, जो हुई उसको सरकार ने खरीदा ही नहीं। समय से धान की पैदावार नहीं होने के चलते गेंहूं की फसल भी प्रभावित हुई है। ऐसे में अब किसान सिंचाई के बाद यूरिया के लिए भटक रहे हैं। दुकानदार मौके का लाभ उठाकर 400 रुपये बोरी खाद बेच रहे हैं। जबकि इसका निर्धारित मूल्य 266 रुपये है। उन्हें रोकने वाला कोई नहीं। क्योंकि सत्ता पक्ष प्रचार में है। विपक्ष किसानों की मजबूरी को वोट बैंक के रुप में इस्तेमाल करने की तैयारी में। किसी को इसकी चिंता नहीं किसानों का क्या होगा। जिले में किसान के नाम पर महापंचायत लग रही है। किसी दुकानदार अथवा जिला प्रशासन के खिलाफ कोई बोलने वाला नहीं। क्योंकि जब किसान परेशान होगा तभी तो वह वोट बैंक बनेगा।
दिल्ली वालों को छोड़ दें तो जिले में चार विधायक हैं। इनमें से एक मंत्री हैं। दो सत्ता पक्ष के दो विपक्ष के। लेकिन किसी को चिंता नहीं जिले में क्या हो रहा है। अगर किसान लूट रहा है तो लूटे। उनकी तो राजनीति टाइट है। अगर बात जिले की करें तो अपनी राजनीतिक पकड़ को बढ़ाने के फेर में सदर विधायक मुन्ना तिवारी इस मसले पर संघर्ष करने के बजाय गांव-गांव घूमकर चौपाल लगा रहे हैं। किसानों का कहना है कि चौपाल बाद में भी लग सकती है लेकिन यूरिया नहीं मिली तो धान की तरह उनकी गेंहूं की फसल भी नष्ट हो जाएगी। बेचारे किसान यूरिया के लिए दर दर भटक रहे हैं, लेकिन न तो जिला प्रशासन को इसकी फिक्र है न ही खुद को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी बताने वाली कांग्रेस को। यह अलग बात है कि विधायक संजय कुमार तिवारी जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लडऩे की बात कर रहे हैं, लेकिन कोर्ट के मामलों की हकीकत किसी से थोड़े न छिपी है।
बता दें कि गेंहूं की पहली सिंचाई शुरू हो चुकी है। यूरिया का छिड़काव भी शुरू हो गया है, लेकिन जिले में इन दिनों यूरिया की किल्लत हो गई है। ऐसे में किसान यूरिया के लिए दुकान-दुकान भटक रहे हैं। उधर, जिले में मौजूद इफको सेंटर पर एक आधार पर तीन ही बोरी खाद मिल रही है। यह किसानों के लिए अपर्याप्त है। किसान खुदरा दकानों पर पहुंच रहे हैं और ब्लैक में यूरिया लेने को मजबूरक हो रहे हैं। किसानों का कहना है कि प्रति बोरी यूरिया के लिए उन्हें सौ से लेकर डेढ़ सौ रुपये ज्यादा देने पड़ रहे हैं। उनके साथ होने वाली इस लूट पर न तो जिला प्रशासन ध्यान है और ना ही किसानों का हितैषी बनने वाले सदर विधायक का। ले दे कर एक विधायक और हैं। जो मंत्री बने हुए हैं। उनका पूरा विभाग खाद छोड़ बालू के चक्कर में पड़ा है। उन्हें भला किसानों क्या चिंता।