भगवान परशुराम जयंती पर विशेष
बक्सर खबर। भारत सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। यहां धर्मग्रथों में वर्णित घटनाओं के सबूत आज भी जहां-तहां बिखरे मिल जाते हैं। परशुराम जयंती पर हम एक ऐसे धाम के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जहां आज भी भगवान परशुराम का फरसा जमीन में गड़ा हुआ है। यह धाम पहले अपने बिहार में हुआ करता था लेकिन राज्य के बंटवारे के बाद झारखंड का हिस्सा हो गया। इसे टांगीधाम के नाम से जाना जाता है। टांगीधाम रांची से 150 और गुमला से 75 किलोमीटर दूर घने जंगलों में स्थित है। यहां परशुराम का फरसा और उनके पदचिह्न मौजूद हैं। माना जाता है कि इसी जंगल में परशुराम ने घोर तपस्या की थी। इस तपस्या के पीछे यह कहानी है कि जनकपुर में जब राम शिव के धनुष को तोड़ देते हैं तो क्रोधित परशुराम वहां आते हैं। उनमें और लक्ष्मण में बहस होती है। बीच में राम को हस्तक्षेप करना पड़ता है। जब परशुराम को यह भान होता है कि राम भी विष्णु के अवतार हैं तो उनका क्रोध शांत हो जाता है। इसके बाद वह जंगलों में जाकर शिव की स्थापना कर तपस्या में जुट जाते हैं। वही जगह आज टांगीनाथ के रूप में जाना जाता है। इस फरसे को लेकर एक कहानी यह भी है कि एक बार लुहार जाति के लोगों ने लोहा के लिए इस फरसे को काटना चाहा। उन्हें इसमें सफलता तो नहीं मिली लेकिन कीमत जरूर चुकानी पड़ी। लोग अपने आप मरने लगे। आज भी इस धाम के 15 किलोमीटर की परिधि में लुहार नहीं बसते। 1989 में यहां हुई खुदाई में सोने और चांदी के आभूषण मिले थे लेकिन कुछ कारण से खुदाई बंद कर दी गई। उसके बाद से फिर खुदाई नहीं हुई। टांगीनाथ के विस्तृत फैलाव को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह कभी हिंदुओं का तीर्थस्थल हुआ करता था लेकिन बाद में यह क्षेत्र खंडहर में तब्दील हो गया।