बक्सर खबरः हाईटेक हुआ जमाना। टूट रही है परंपरा की डोर। परंतु, गुरु-शिष्य की पवित्र परंपरा आज भी बहुत हद तक कायम है। जिसका परिणाम है कि आज भी धरती पर अगर भगवान है, तो वह है गुरुजी। गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु (शिक्षक) अपने शिष्य को शिक्षा देता है या कोई विद्या सिखाता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रूप में दूसरों को शिक्षा देता है। यही क्रम चलता जाता है। यह युक्त बाते युवराज चंद्रविजय सिंह ने जागरण प्रतियोगिता मंच द्वारा आयोजित जयसवाल मार्केट में गुरू शिष्य गोष्ठी पर कही। सिंह ने कहा कि यह परम्परा कोई नई नही है सनातन धर्म की सभी धाराओं में मिलती है।
गुरु-शिष्य की यह परम्परा ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में हो सकती है, जैसे- अध्यात्म, संगीत, कला, वेदाध्ययन, वास्तु आदि। भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। कहीं गुरु को ब्रह्मा-विष्णु-महेशश्वर कहा गया है। इससे पूर्व सेमिनार का उदघाटन शिक्षाविद ब्रह्मा पांडेय, युवराज चंद्रविजय सिंह व डा. मनीष कुमार शशि ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया। गुरू गोष्ठी कार्यक्रम की अध्यक्षता अनिल केशरी व संचालन पुखराज भारती ने किया। कार्यक्रम की समाप्ती सरस्वती बंदना से हुई। कार्यक्रम में मृत्यंुजय प्रसाद, पुखराज भारती, अनंत भारती, संजय भारती, अब्दूल बारी शाकी, विमलेश राय, अंबरीश पाठक, जफर इमाम, जसप्रीत सिंह, रिद्धि कुमारी, मंजूर आलम, साक्षी कुमारी, काजल कुमारी, अमृता, नेहा सहित कई अन्य थे।