संघर्ष में गुजरता है पत्रकार का जीवन : धीरज वर्मा

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बक्सर खबर : पत्रकारिता करना अपने आप में चुनौती है। जितनी मुश्किलें कलम चलाने में हैं। उतना ही कठिन है अपने जीवन को चलाना। यह पेशा सामाजिक रुप से सम्मान जनक है। लेकिन अपने आप को इसमें बनाए रखने के लिए बहुत कुछ बर्दाश्त करना होता है। मुझे याद है ग्यारह वर्ष पहले पत्रकारिता बक्सर से शुरु की। हिन्दुस्तान अखबार के लिए काम करने का मौका मिला। तब महज दस रुपये प्रति खबर मिलते थे। अर्थात दिन भर में आप पांच से दस खबर लिखते लेते हैं तो पचास से सौ रुपये। इन रुपयों में जीवन का चलाना कितना मुश्किल है। यह हर कोई समक्ष सकता है। ऐसी स्थिति में जरुरी हो जाता है कोई पत्रकार अपनी जीविका के लिए कुछ और प्रयास करे। जिसने कोई रास्ता चुन लिया। वह कामयाब है। जो नहीं समझ सका। वह ता उम्र परेशानी झेलने को विवश है।

यह कड़वा अनुभव है धीरज वर्मा का। शहर के सिविल लाइन में रहने वाले धीरज को पत्रकारिता विरासत में मिली है। पिता रामेश्वर प्रसाद वर्मा इस जिले के प्रथम पत्रकारों में से एक हैं। चाचा कमलेश हिन्दुस्तान अच्छे और बड़े पत्रकार हैं। इन दोनों के सानिध्य में रहकर धीरज ने यह तो जान लिया था। पत्रकारिता सत्ता को आरती दिखाने के लिए नहीं। लेकिन चुनौतियों के बीच परिवार की जरुरतें हमेशा दरवाजा खटखटातीं रहीं। धीरज वर्मा फिलहाल घायल हैं। पैर में चोट लगी है। लेकिन खबर लिखने और पढऩे की सनक उनको इतनी है कि घर से ही खबरें लिखते रहते हैं। संचार तकनीक के दौर का लाभ उन्हें मिल रहा है। अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के लिए हमने उनसे पिछले दिनों लंबी बात की। प्रस्तुत है बातचीत मुख्य अंश।
दस रुपये में शुरु हुआ सफर
बक्सर : धीरज वर्मा वर्ष 2006 में पत्रकारिता से जुड़े। तब उन्होंने हिन्दुस्तान अखबार से शुरुआत की। आज भी उसी बैनर के साथ जमे हुए हैं। पूर्णकालिक पत्रकार बनकर उन्होंने सुबह से रात तक अखबार की सेवा की। वे बताते हैं दस रुपये प्रति न्यूज से जीवन शुरु हुआ। आज अच्छा मुकाम हासिल है। तब खबरों के लिए दौड़ लगानी होती थी। आज खबरें स्वयं चलकर आती हैं। बावजूद इसके उस वक्त खुशी मिलती थी। अब सिर्फ संतोष मिलता है। अगर कुछ भला बुरा हो जाए तो अफसोस होता है। मैं आने वाले साथियों से बस यही कहूंगा, अगर आपको पैसे की जरुरत है तो जिले से बाहर की रुख करें। अन्यथा जिले में वेतन भोगी बनने के लिए आपको वर्षों गुजारने होंगे। अगर आप जिले में रहकर पत्रकारिता करना चाहते हैं। तो पत्रकारिता को शौक के रुप में इस्तेमाल करें। कमाने की इच्छा रखना बेकार है। साथ ही आप अपनी और पत्रकारिता की छवि बनाए रखें। क्योंकि इस समाज की यह पूंजी है। उसको नुकसान पहुंचाने का कार्य नहीं करें।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : धीरज वर्मा का जन्म 4 फरवरी 1968 को हुआ। जिले के ख्याति प्राप्त पत्रकार व साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद वर्मा के पुत्र होने के कारण उनको पत्रकारिता जगत में अच्छी पहचान मिली। स्नातक की परीक्षा पास कर उन्होंने कुछ समय तक शिक्षा से भी सरोकार रखा। लेकिन कलम चलाने वाले को चैन कहा। वे स्वयं को पत्रकारिता से दूर नहीं रख पाए। जिसका सुख-दुख वे आज स्वयं झेल रहे हैं।

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