बक्सर खबर। कोरोना ने जब देश में दस्तक दी थी। पहला मामला केरल से आया था। अपने प्रदेश में इसका प्रभाव मार्च में देखा गया। तब जांच राजधानी के कुछ प्रमुख अस्पतालों में होती थी। रिपोर्ट आने में तीन से चार दिन का समय लग जाता था। मार्च और अप्रैल माह में लगभग दो हजार लोगों की जांच हो पाई थी। लेकिन, 10 जून के बाद ट्रू नेट की जांच जिले में होने लगी। जून में लगभग तीन हजार लोगों की जांच हुई। माह की समाप्ति तक कुल जांच पांच हजार के लगभग पहुंची।
जब जिले के कुल रोगियों की संख्या ढ़ाई सौ के लगभग थी। जुलाई में जांच की क्षमता का विस्तार हुआ। ट्रू नेट के अलावा रैपिड कीट से जांच शुरू हुई। परिणाम कुछ मिनट में सामने आने लगे। कीट से जांच करना और सुगम हो गया। इस वजह से एक दिन में दो सौ से ढ़ाई सौ लोगों की जांच होने लगी। उसे जिला अस्पताल से प्रखंड और गांव तक भेजा गया। इसके साथ ही संक्रमित लोगों के आंकड़े में भारी उछाल आया। लगभग सात हजार लोगों की जांच जुलाई में हुई। साथ ही जिले में मरीजों का आंकड़ा भी 250 से बढ़कर 1000 को पार कर गया।
ज्यादा जांच होने से भले ही रोगियों की संख्या में इजाफा दिख रहा है। लेकिन, मास लेबल पर संक्रमण को फैलने से रोकने का यही कारगर तरीका है। संक्रमित की पहचान हो और उन्हें क्वारंटाइन या आइसोलेट किया जाए। 31 जुलाई को जिले का कुल आंकड़ा कुछ इस प्रकार है। जांच हुई 12868, संक्रमित मिले 1004, ठीक हुए 558 लोग। अर्थात संख्या भले बढ़ी अपना रिकवरी रेट अच्छा रहा। इस लिए सजगता बचाव का सबसे कारगर हथियार है। हमेशा स्वास्थ्य विभाग के निर्देशों का पालन करें।