– चातुर्मास कथा में स्वामी जी ने बताया माया पर अंकुश लगाने का तरीका
बक्सर खबर। श्रीमद्भागवत महापुराण ऐसी कथा है जिसके प्रारंभ में भी महात्मा है और कथा के अंत में भी। लेकिन जब भारतवर्ष के महान मनीषी तपस्वी संत जीयर स्वामी जी भागवत की कथा कहते हैं तो हर संदर्भ में जीवन के लिए उपदेश एवं प्रेरक प्रसंगों का उल्लेख करते हैं। बुधवार की कथा के दौरान अमरनाथ गुफा से भगवान शिव द्वारा कही गई अमर कथा सुनकर सुकदेव जी महाराज व्यास जी की कुटिया तक पहुंच गए। और 12 वर्ष तक माता के गर्भ में ही बैठे रहे।
जब व्यास जी ने उनसे आग्रह किया पुत्र बाहर आ जाइए। गर्भ से ही उन्होंने कहा मुझे बाहर आने में बहुत डर लगता है। संसार की माया मुझे घेर लेगी। उनका सवाल सुनकर व्यास मुनि भी चक्कर में पड़ गए। भगवान की माया से तो कोई बच नहीं सकता। फिर नारद मुनि पहुंचे, उन्होंने भी कहा आप बाहर आ जाइए आपको माया नहीं रोक सकेगी। तब सुकदेव जी ने उनसे भी पूछा क्या आपको कभी माया ने प्रभावित नहीं किया। नारद मुनि भी चक्कर में पड़ गए। उन्हें दो-तीन संस्मरण याद आए जिसमें माया के चक्कर में उनकी श्री हरि नारायण से भी ठन गई थी।
अंततोगत्वा दोनों लोगों के विमर्श के उपरांत सुकदेव जी इस निर्णय पर पहुंचे इस संसार में माया से लड़कर कोई नहीं जीत सकता। उस पर अंकुश तभी लगाया जा सकता है। जब माया पति श्री हरि नारायण की उपासना की जाए अथवा उनकी आपके ऊपर सीधी कृपा हो तभी उसके प्रभाव से बचा जा सकता है। जीयर स्वामी जी ने आसान भाषा में इसकी व्याख्या करते हुए कहा संसार में आने वाला हर व्यक्ति माया के प्रभाव में है। उस से निकल पाना उस पर विजय पाना किसी के बस में नहीं। यह तभी संभव है जब आप श्री हरि नारायण की शरण में चले जाएं।
उदाहरण स्वरूप अगर कोई बहुत ही मजा हुआ नाविक, मछुआरा जाल लेकर नदी में मछलियां पकड़ रहा हो। और उसकी नाव की शरण में जब कोई चला जाए अथवा नाव के नीचे जो मछली रहे उसे जाल से नहीं पकड़ा जा सकता। उसी तरह प्रभु की भक्ति में लीन व्यक्ति माया पर अंकुश लगा सकता है। कथा प्रसंग के दौरान स्वामी जी ने कई उपदेश दिए इस क्रम में उन्होंने कहा वर्तमान समय में कलिकाल चल रहा है। ऐसे में लंबे अनुष्ठान करना उचित नहीं है। उस में व्यवधान पैदा होने, विकारा आने अथवा त्रुटि होने का डर बना रहता है। नौ दिनों का नवरात्र करने वाले लोगों से जाकर समझिए उपासना की पूरी विधि कर पाना कितनी चुनौती वाला कार्य है। इसलिए कलयुग में प्रभु के नाम की उपासना कीजिए ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। और कोई भी अनुष्ठान अगर करना है एक दिन एक दिन, 5 दिन, 8 दिन 10 दिन का ही करना उचित बताया गया है। लंबे अनुष्ठान करने से उसके भंग होने का खतरा बना रहता है। पाठकों की जानकारी के लिए बता दें स्वामी जी का चातुर्मास व्रत बलिया जिला के जनेश्वर सेतु पहुंच मार्ग के समीप चल रहा है। विजयदशमी उत्सव तक जारी रहेगा।